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समवायो
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समवाय ७ : सू० १५-२३ १५. असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं असुरकुमाराणां देवानां अस्ति एकेषां १५. कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति सात
सत्त पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सप्त पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता। पल्योपम की है । १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं सौधर्मशानयोः कल्पयोरस्ति एकेषां १६. सौधर्म और ईशानकल्प के कुछ देवों
देवाणं सत्त पलिओवमाइं ठिई देवानां सप्त पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति सात पल्योपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता। १७. सणंकुमारे कप्पे अत्थेगइयाणं सनत्कुमारे कल्पे अस्ति एकेषां १७. सनत्कुमारकल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट
देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोव- देवानामुत्कर्षण सप्त सागरोपमाणि स्थिति सात सागरोपम की है। माई ठिई पण्णत्ता।
स्थिति: प्रज्ञप्ता। १८. माहिदे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं माहेन्द्रे कल्पे देवानामुत्कर्षण १८. माहेन्द्रकल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति
साइरेगाई सत्त सागरोवमाइं ठिई सातिरेकाणि सप्त सागरोपमाणि स्थितिः साधिक सात सागरोपम की है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता। १६.बंभलोए कप्पे देवाणं जहणणं ब्रह्मलोके कल्पे देवानां जघन्येन सप्त १६. ब्रह्मलोककल्प के देवों की जघन्य स्थिति सत्त सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता।
सात सागरोपम की है। २०. जे देवा समं समप्पभं महापभं ये देवाः समं समप्रभं महाप्रभं प्रभासं २०. सम, समप्रभ, महाप्रभ, प्रभास, भासुर,
पभासं भासुरं विमलं कंचणकूडं भासुरं विमल काञ्चनकूट विमल, कांचनकूट और सनत्कुमारासणंकुमारवडेंसगं विमाणं देवत्ताए सनत्कुमारावतंसकं विमानं देवत्वेन वतंसक विमानों में देवरूप में उत्पन्न उववण्णा, तेसि णं देवाणं उपपन्नाः, तेषां देवानामुत्कर्षेण सप्त होने वाले देवों की उत्कृष्ट स्थिति उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ।
सात सागरोपम की है। पण्णत्ता। २१. ते णं देवा सत्तण्हं अद्धमासाणं ते देवाः सप्तानामर्द्धमासानां आनन्ति वा २१. वे देव सात पक्षों से आन, प्राण,
आणमंति वा पाणमंति वा प्राणन्ति वा उच्छ्वसन्ति वा निःश्वसन्ति उच्छवास और निःश्वास लेते हैं।
ऊससंति वा नीससंति वा। वा। २२. तेसि णं देवाणं सत्तहिं वाससह- तेषां देवानां सप्तभिर्वर्षसहस्रैराहारार्थः २२. उन देवों के सात हजार वर्षों से भोजन स्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। समुत्पद्यते ।
करने की इच्छा उत्पन्न होती है। २३. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये २३. कुछ भव-सिद्धिक जीव सात बार जन्म सहि भवग्गहDह सिन्झिस्संति सप्तभिर्भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति भोत्स्यन्ते ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिबुझिस्संति मुच्चिस्संति मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति सर्वदुःखाना- निवृत होंगे तथा सर्व दुःखों का अन्त परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाण- मन्तं करिष्यन्ति ।
करेंगे। मंतं करिस्संति ।
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