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समवायो
प्रकीर्णक समवाय : टिप्पण ७६-८०
७६. मरुदेश के वृषभ तुल्य (मरुयवसभकप्पा) सूत्र २४१ :
वृत्तिकार ने 'मरुयवसभकप्पा' का अर्थ 'मरुत्वषभकल्प-देवराज तुल्य किया है। किन्हीं आदर्शों में 'मरुय' के स्थान में 'मरुत' पाठ मिलता है। इस 'तकार' श्रुति के कारण ही संभवतः वृत्तिकार का ध्यान 'मरुत्'-देवता की ओर गया है । 'मस्य' का अर्थ 'मरुदेश' होता है। मरुदेश के वृषभ धुरा को वहन करने में अत्यन्त क्षम होते हैं। धुरा-वहन की क्षमता के कारण बलदेव-वासुदेव को मरदेश के वृषभ की उपमा से उपमित किया गया है।
७७. सूत्र २४१
देखें-हरिवंश पुराण ६०/२८८, २८६ । ७८. निदान (निदाण) सूत्र २४४ :
निदान का अर्थ है-तपोबल के आधार पर किया जाने वाला ऐहिक समृद्धि का संकल्प । ७६. द्यूत में पराजय (जुवे पराइओ) सूत्र २४५ (१) :
यद्यपि गाथा में चूत का दूसरा स्थान है और संग्राम का तीसरा। किन्तु निदान-हेतुओं के सम्बन्ध की दृष्टि से संग्राम का स्थान दूसरा और द्यूत का तीसरा है । वासुदेव के पूर्वभव की नामसूचि में पर्वतक दूसरा और धनदत्त तीसरा वासुदेव है।
इससे ज्ञात होता है कि यहां गाथा-रचना की दृष्टि से व्यत्यय किया गया है। ८०. सूत्र २४५
समवायांग के वृत्तिकार ने इन निदान-कारणों की कोई व्याख्या नहीं की है । आवश्यक नियुक्ति की दीपिका (पत्र १५) में उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
१. राजा विश्वभूति मुनि पर्याय में जब गाय के धक्के से गिर पड़ा तब उसने यह निदान किया-'भवान्तर में मैं
अमित बल वाला होऊ।' २. महाराज पर्वतक के पास एक रूपवती वेश्या थी। बन्ध्यशक्ति नाम के राजा ने उसकी मांग की। पर्वतक के इन्कार करने पर उससे संग्राम किया और उसे पराजित कर बन्दी बना लिया। कालान्तर में पर्वतक दीक्षित हुआ
और यह निदान किया कि मैं भावीजन्म में बन्ध्य का वध करने की शक्ति प्राप्त करूं । ३. राजा बलि ने धनमित्र राजा को चूत में पराजित किया। धनमित्र ने दीक्षा ले राजा बलि को मारने का निदान
किया। ४. राजा समुद्रदत्त ने अपनी पत्नी का हरण हो जाने पर हरण करने वाले के वध के लिए निदान किया। ५. राजा शैवाल जब रण में हार गया तब उसने विजयी राजा के वध के लिए निदान किया। ६. महाराज प्रिय मित्र की भार्या का हरण हो जाने पर उन्होंने हरण करने वाले के वध के लिए निदान किया। ७. राजा ललितमित्र सभा में बैठा था। मंत्री ने कहा-राजकुमार राज्य योग्य हो गया है। उसे राज्य देना
चाहिए। राजा ने इसे अपना अपमान समझा। दीक्षित होने पर उसने मंत्री के वध का निदान किया। ८. एक बार विद्याधर पुनर्वसु त्रिभुवनानन्द चक्रवर्ती की पुत्री को हरण कर जा रहा था। चक्रवर्ती ने अपने सैनिक
भेजे । पुनर्वसु उनसे लड़ने लगा। कन्या हाथ से नीचे गिर पड़ी। उसे बहुत खेद हुआ। चक्रवर्ती की महान ऋद्धि का उसे भान हुआ। दीक्षित हो उसने निदान किया कि मैं भवान्तर में इस लड़की (चक्रवर्ती की पुत्री) का पति
बनूं । ६. एक सेठ का पुत्र था। उसका नाम था गंगदत्त । माता का अपमान देखकर उसने जनप्रिय राजा होने का निदान किया।
१. समवायांगवृत्ति, पत्र १४७ :
मरुद्वषभकल्पा:-देवराजोपमाः। २. पावश्यकनियुत्ति दीपिका, पन ६५ :
इह किल 'गावीए संगामें ति पाठो दृश्यते, परं सम्बन्धेषु निदानहेतव एवं दृश्यन्ते, ततः प्राकृतत्वाद् व्यत्ययोऽपि पटते ।
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