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________________ समवाप्रो प्रकोणक समवाय : टिप्पण ३४-३८ माता-पिता की मृत्यु कब हुई या होगी उसका भी निर्देश करता है।' ३४. विद्या के अतिशय (विज्जाइसया) सूत्र ६८ : स्तम्भन विद्या, स्तोभविद्या, वशीकरण, विद्वेषीकरण, उच्चाटन आदि विद्याओं को 'विद्यातिशय' माना है।' ३५. महाप्रश्नविद्याओं (महापसिणविज्जा) सूत्र ६८ : वाणी के द्वारा पूछने पर ही जो उत्तर देती हैं वे महाप्रश्न विद्याएं कहलाती हैं। इनके अधिष्ठाता देवता होते हैं।' ३६. मनःप्रश्नविद्याओं (मणपसिणविज्जा) सूत्र ६८ : मन में उठे हुए प्रश्नों का उत्तर देने वाली विद्याएं । इनके अधिष्ठाता देवता होते हैं।' ३७. पैंतालीस अध्ययन (पणयालीसं अज्झयणा) सूत्र ६८: प्रस्तुत प्रसंग में अध्ययनों का निर्देश किसी भी आदर्श में प्राप्त नहीं है, किन्तु उद्देशन-काल से पूर्व अध्ययन का निर्देश अवश्य ही होना चाहिए। नंदी (६०) म इसके अध्ययनों की संख्या पैतालीस बतलाई है, अतः यहां भी उसकी संभावना की गई है। वृत्तिकार ने इसके दस अध्ययन माने हैं और उसके आधार पर दस उद्देशन-काल होने चाहिए, ऐसी मान्यता व्यक्त की है। पैंतालीस उद्देशन-कालों की मान्यता को उन्होंने वाचनान्तर माना है।' ३८. सूत्र १८: प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं । स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए हैंउपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षौमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहप्रश्न ।' इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। १. निशीथमाष्य, गाथा ४२६०, ४२६१ : पसिणापसिणं सुविणे, विज्जासिद्धं तु साहति परस्स । महवा पाइंखिणिया, घंटियसिद्रं परिकहेति ।। लाभालामसुहदुई, प्रणभूय इमं तुमे सुहिहिं वा । जीवित्ता एवइयं, कालं सुहिणो मया तुज्झं ।। सुविणयविज्जाकहियं कधितस्स पसिणापसिणं भवति । अहवा-विज्जाभिमंतिया घटिया कण्णमूले चालिज्जति, तत्थ देवता कधिति, कहेंतस्स पसिणापसिणं भवति, स एव इंखिणी भण्णाति । पुच्छगं भणति-प्रतीतकाले वट्टमाणे वा इमो ते लाभो लद्धो, मणागते वो इमं भविस्यति । एवं मलाभं पि निहिस्सति, एवं सुहदुक्खे वि संवादेति । महवा भन्नति-सुहीहिं ते इमं लद्धमणभूतं वा । महबा भणाति-मातापितादिते सुहिणो एवतियं कालं जीविया अमगे काले एव मता। १. समवायांगवृत्ति, पत्न ११५: विद्यातिशयाः स्तम्भस्तोमवशीकरणविद्वेषीकरणोच्चाटनादयः । 1. वही, पत्र ११५: विविधमहाप्रश्नविद्याश्च-वाचव प्रश्ने सत्युत्तरदायिन्य: । ..वही, पन्न ११५: मन प्रश्न विद्याम्च-मनः प्रश्तितार्थोत्तरदायिन्यस्तासां देवतानितदधिष्ठातृदेवतास्तेषाम्। ५. वही, पन्न ११६: 'पणयालीस मित्यादि यद्यपीहाध्ययनानां दशत्वादशीवोद्देश्यवकाला भवन्ति व्यापि वाचनान्तरापेक्षया पञ्चचत्वारिंशदिति सम्भाव्यते इति 'पणयालीस' मित्याद्यविरुद्धमिति । १.ठाणं १०/११६: पण्हावागरणदसाणं दस प्रज्झषणा पण्णता, तं जहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, मायरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमगपसिगाई, कोमलपसिणाई, भद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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