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________________ समवायो समवाय २ : सू० २३ २३. अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा, सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये २३. कुछ भव-सिद्धिक जीव दो बार जन्म जे दोहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति द्वाभ्यां भवग्रहणाभ्यां सेत्स्यन्ति ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और बझिस्संति मच्चिस्संति परि- भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का निव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति । अन्त करेंगे। करिस्संति। टिप्पण १. दण्ड (दंडा) दंड के दो अर्थ हैं-हिंसा और दुष्प्रवृत्ति । हिंसा के दो प्रकार हैं१. अर्थदंड-अपने प्रयोजन से अथवा दूसरे के प्रयोजन से की जाने वाली हिंसा । २. अनर्थदंड-निष्प्रयोजन की जाने वाली हिसा'। विशेष विवरण के लिए देखें-सूत्रकृतांग, २/२/२ का टिप्पण । २. सूत्र ११ यह उत्तर के नागकुमार भवनवासी देवों की स्थिति के आधार पर कहा गया है।' १. समवायांगवृत्ति, पत्र : प्रर्थन--स्वपरोपकारलक्षणेन प्रयोजनेन दण्डो-हिंसा-अर्थदण्डः एतद् विपरीतोऽनर्थदण्ड इति । २. समवायांगवृत्ति, पत्र ७,८: तथा भसुरेन्द्रजितभवनवासिनां द्वे देशोने पल्योपमे स्थितिरौदीच्यनागकुमारादीनाथित्यावसेया, यत आह- 'दो देसूणुत्तरिल्लाण' ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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