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________________ समवायो ३६३ प्रकोणक समवाय : सू० २१२-२१७ गोयमा! इत्थिवेया पुरिसवेया, गौतम ! स्त्रोवेदाः पुरुषवेदाः, नो गौतम ! वे स्त्रीवेद होते हैं, पुरुषवेद णो णपुंसगवेया जाव थणिय त्ति। नपुंसकवेदाः यावत् स्तनिता इति । होते हैं किन्तु नपुंसकवेद नहीं होते। स्तनित कुमार तक के सभी भवनपति देव स्त्रीवेद और पुरुषवेद होते हैं, नपुंसकवेद नहीं होते। २१२. पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि- पृथिवी-अप-तेजो-वायू-वनस्पति-द्वि-त्रि- २१२. पृथ्वी, अप, तेजस्, वायु, वनस्पति, ति - चरिदिय - संमुच्छिमपंचि- चतुरिन्द्रिय - सम्मूच्छिम-पञ्चेन्द्रिय- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, दियतिरिक्ख - समुच्छिममणुस्सा तिर्यक् . सम्मूच्छिममनुष्याः सम्मूच्छिम, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, णपुंसगवेया। नपुंसकवेदाः। सम्मूच्छिम मनुष्य--ये सब नपुंसकवेद होते हैं। २१३. गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचदिय- गर्भावक्रान्तिकमनुष्याः तिरिया य तिवेया। तिर्यञ्चश्च त्रिवेदाः। पञ्चेन्द्रिय- २१३. गर्भावक्रान्तिक मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च त्रिवेद-तीनों वेदों से युक्त होते हैं। २१४. जहा असुरकुमारा तहा वाण- यथा असुरकुमारा: तथा वानमन्तराः २१४. वानमंतर, ज्यौतिष्क और मालिक मंतरा जोइसिया वेमाणियावि। ज्योतिष्काः वैमानिका अपि । देव असुरकुमार की भांति स्त्रीवेद और पुरुषवेद होते हैं, नपुंसकवेद नहीं होते। समवसरण-पदं समवसरण-पदम् । समवसरण-पद २१५. ते णं काले णं ते णं समए णं तस्मिन् काले तस्मिन् समये कल्पस्य २१५. उस काल में और उस समय में श्रमण कप्पस्स समोसरणं णेयव्वं जाव समवसरणं नेतव्यम्, यावत् गणधराः भगवान् महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर थे। यहां कल्पसूत्रगणहरा सावच्चा निरवच्चा सापत्याः निरपत्याः व्युच्छिन्नाः । पर्युषणाकल्प का 'समवसरण' प्रकरण वोच्छिण्णा। ज्ञातव्य है। वर्तमान के साधु सुधर्मास्वामी की संतति हैं। शेष सब गणधरों की सन्ततियां विच्छिन्न हो गई। कुलगर-पदं कुलकर-पदम् कुलकर-पद २१६. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे अतीतायां २१६. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत तीयाए ओसप्पिणीए सत्त कुलगरा अवसर्पिण्यां सप्त कुलकराः बभूवुः, अवपिणी में सात कुलकर हुए थे, होत्या, तं जहा- तद्यथा जैसे१. मित्तदामे सुदामे य, मित्रदामः सुदामश्च, १. मित्रदाम २. सुदाम ३. सुपार्श्व सुपासे य सयंपमे। सुपार्श्वश्च स्वयंप्रभः। ४. स्वयंप्रभ ५. विमलघोष ६. सुघोष विमलघोसे सुघोसे य, विमलघोष: सुघोषश्च, ७. महाघोष। महाघोसे य सत्तमे॥ महाघोषश्च सप्तमः॥ २१७. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे जम्बूद्वीपे द्वोपे भारते वर्षे अतीतायां २१७. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत नीयाए उम्सप्पिणीए दस कलगरा उत्सपिण्यां दश कुलकरा: बभूवः, उत्सपिणी में दस कुलकर हुए थे, होत्या, तं जहा तद्यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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