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समवानो
२००. आऊ थिवुयसंठाणा पण्णत्ता।
आपः स्तिबुकसंस्थाना: प्रज्ञप्ताः।
प्रकीर्णक समवाय : सू० २००-२११ २००. पानी के जीव स्तिबुक (जल का
बुलबुला) संस्थान वाले होते हैं।
२०१. तेऊ सूइकलावसंठाणा पण्णता।
तेजः सूचिकलापसंस्थानं प्रज्ञप्तम् ।
२०१. तेजस् के जीव सूचीकलाप के संस्थान
वाले होते हैं।
२०२. वाऊ पडागठाणा पण्णत्ता।
वायुः पताकासंस्थानः प्रज्ञप्तः।
२०२. वायु के जीव पताका-संस्थान वाले
होते हैं।
२०३. वणप्फई
पण्णत्ता।
नाणासठाणसंठिया वनस्पतिः
प्रज्ञप्तः ।
नानासंस्थान-संस्थितः २०३. वनस्पति के जीव नाना प्रकार के
संस्थान वाले होते हैं।
२०४. बेइंदिय-तेइंदिय - चरिदिय - द्वीन्द्रिय - त्रीन्द्रिय - चतुरिन्द्रिय- २०४. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और
सम्मुच्छिमपंचेंदिय • तिरिक्खा सम्मूच्छिमपञ्चेन्द्रिय-तिर्यञ्चः हुण्ड- सम्मूच्छिमपञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च हुण्ड हुंडसंठाणा पण्णत्ता। संस्थानाः प्रज्ञप्ताः।
संस्थान वाले होते हैं।
२०५. गब्भवक्कंतिया छन्विहसंठाणा गर्भावक्रान्तिकाः षड्विधसंस्थानाः २०५. गर्भावक्रान्तिक तिर्यञ्च छहों संस्थान पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः ।
वाले होते हैं।
२०६. सम्मुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाण- सम्मूच्छिममनुष्याः संठिया पण्णत्ता।
संस्थिताः प्रज्ञप्ताः ।
हुण्डसंस्थान- २०६. सम्मूच्छिम मनुष्य हुण्ड संस्थान वाले
होते हैं।
२०७. गब्भवक्कंतियाणं मणुस्साणं गर्भावक्रान्तिकानां मनुष्याणां २०७. गर्भावक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थान छविहा संठाणा पण्णत्ता। षडविधानि संस्थानानि प्रज्ञप्तानि ।
वाले होते हैं।
२०८. जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा
जोइसिया वेमाणिया।
यथा असुरकूमारास्तथा वानमन्तरा: २०८. वानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक ज्योतिष्काः वैमानिकाः।
देव असुरकुमार की भांति समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं।
वेय-पदं वेद-पदम्
वेद-पद २०६. कइविहे णं भंते ! वेए पण्णते ? कतिविधः भदन्त ! वेदः प्रज्ञप्तः ? २०६. भंते ! वेद कितने प्रकार के हैं ?
गोयमा! तिविहे वेए पण्णत्ते, गौतम! त्रिविधः वेदः प्रज्ञप्तः, गौतम ! वेद तीन प्रकार के हैं, जैसेतं जहा-इत्थीवेए पुरिसवेए तद्यथा-स्त्रीवेद: पुरुषवेदः नपुंसकवेदः। स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद । नपुंसगवेए।
२१०. नेरइया णं भंते ! कि इत्थीवेया
परिसवेया णपुंसगवेया पण्णत्ता? गोयमा! णो इथिवेया णो पुंवेया, णपुंसगवेया पण्णत्ता।
नैरयिकाः भदन्त ! किं स्त्रीवेदा: २१०. भंते ! क्या नरयिक स्त्रीवेद, पुरुषवेद पुरुषवेदाः नपंसकवेदा प्रज्ञप्ताः ?
या नपुंसकवेद होते हैं ? गौतम! नो स्त्रीवेदाः नो परुषवेदाः. गौतम ! वे स्त्रीवेद नहीं होते, पुरुषवेद नपुंसकवेदाः प्रज्ञप्ताः ।
नहीं होते किन्तु नपुंसकवेद होते हैं।
२११. असुरकुमाराणं भंते ! कि इत्थि- असुरकुमाराः भदन्त ! किं स्त्रीवेदाः २११. भंते ! क्या असुरकुमार स्त्रीवेद, वेया पुरिसवेया नपुंसगवेया? पुरुषवेदाः नपुंसकवेदाः ?
पुरुषवेद या नपंसक वेद होते हैं ?
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