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समवानो
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प्रकीर्णक समवाय : सू० १३३
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं इत्येतद् द्वादशाङ्गं गणिपिटकं अनागते अणागए काले अणंता जीवा काले अनन्ताः जोवा: आज्ञया विराध्य आणाए विराहेत्ता चाउरतं चातुरन्तं संसारकान्तारं अनुपरिसंसारकंतारं अगुपरियट्टिस्संति। वतिष्यन्ते ।
भविष्य काल में अनन्त जीव इस द्वादशांग गणिपिटिक की आज्ञा का पालन न करने के कारण विराधना कर चातुरंत संसार के कांतार में पर्यटन करेंगे।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं इत्येतद् द्वादशाङ्गं गणिपिटकं अतीते अतीते काले अणंता जीवा आणाए काले अनन्ता: जीवाः आज्ञया आराध्य आराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं चातुरन्तं संसारकान्तारं व्यत्यवाजिषुः । विइवइंसु।
अतीत काल में अनन्त जीवों ने इस द्वादशांग गणिपिटक की आज्ञा का पालन करने के कारण आराधना कर चातुरंत संसार के कांतार को पार किया था।
इच्चेतं वालसंगं गणिपिडगं इत्येतद द्वादशाङ्गं गणिपिटक पड़प्पण्णे काले परित्ता जीवा प्रत्युत्पन्ने काले अनन्ताः जीवा: आज्ञया आणाए आराहेत्ता चाउरंतं आराध्य चातुरन्तं संसारकान्तारं संसारकतारं विइवयंति । व्यतिव्रजन्ति ।
वर्तमान काल में परिमित जीव इस द्वादशांग गणिपिटक की आज्ञा का पालन करने के कारण आराधना कर चातुरंत संसार के कांतार को पार करते हैं।
इच्चेतं वालसंगं गणिपिडगं इत्येतद् द्वादशाङ्गं गणिपिटकं अनागते अणागए काले अणंता जीवा काले अनन्ताः जीवाः आज्ञया आराध्य आणाए आराहेता चाउरतं चातुरन्तं
संसारकान्तारं संसारकंतारं विइवइस्संति । व्यतिव्रजिष्यन्ति ।
भविष्य काल में अनन्त जीव इस द्वादशांग गणिपिटक की आज्ञा का पालन करने के कारण आराधना कर चातुरंत संसार के कांतार को पार करेंगे।
१३३. दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण द्वादशाङ्गं गणिपिटकं न कदाचिद् १३३. यह द्वादशांग गणिपिटक कभी नहीं
कयाइ णासी, ण कयाइ णत्थि, नासीत्, न कदाचिद् नास्ति, न था -ऐसा नहीं है, कभी नहीं हैण कयाइ ण भविस्सइ। भवि कदाचिद न भविष्यति। अभूत् च, ऐसा नहीं हैं, कभी नहीं होगा-ऐसा च, भवति य, भविस्सति य। भवति च, भविष्यति च । ध्रुवं निचितं भी नहीं है । वह था, है और रहेगा। धवे णितिए सासए अक्खए अव्वए शाश्वतं अक्षयं अव्ययं अवस्थितं वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अवट्ठिए णिच्चे। नित्यम्।
अव्यय, अवस्थित और नित्य है। से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण तद् यथानामकं पञ्चास्तिकायाः न जैसे पांच अस्तिकाय कभी नहीं थेकयाइ ण आसी, ण कयाइ कदाचिद् न आसन्, न कदाचिद् न ऐसा नहीं है, कभी नहीं हैं ऐसा नहीं णत्थि, ण कयाइ ण भविस्ति । सन्ति, न कदाचिद् न भविष्यन्ति । है, कभी नहीं होंगे-ऐसा भी नहीं विच, भवति य, भविस्ांति अभूवंश्च, भवन्ति च, भविष्यन्ति च। है। वे थे, हैं और होंगे। वे ध्रुव, य। धुवा णितिया सासया ध्रुवाः निचिताः शाश्वताः अक्षयाः नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अक्खया अव्वया अवट्ठिया अव्ययाः अवस्थिताः नित्याः ।
अवस्थित और नित्य हैं। णिच्चा। एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे ण एवमेव द्वादशाङ्ग गणिपिटकं न इसी प्रकार द्वादशांग गणिपिटक कभी कयाइ ण आसी, ण कयाइ णत्थि, कदाचिद् न आसीत्, न कदाचिद् । नहीं था—ऐसा नहीं है, कभी नहीं ण कयाइ ण भविस्सइ। भुवि नास्ति, न कदाचिद् न भविष्यति।। है-ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगाच, भवति य, भविस्सइय। अभूत् च, भवति च, भविष्यति च।। ऐसा भी नहीं है। वह था, है और
होगा।
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