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समवानो
प्रकीर्णक समवाय : सू० ५४-६२
५४. एवं नीलवंतस्सवि।
एवं नीलवतोऽपि।
५४. नीलवान् वर्षधर पर्वत के उपरितन
शिखरतल से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम काण्ड के बहुमध्यदेशभाग का व्यवधानात्मक अन्तर नौ सौ योजन का है।
५५. सम्वेविणं गेवेज्जविमाणा दस- सर्वाण्यपि ग्रैवेयविमानानि दश-दश ५५. सभी ग्रैबेयक विमान हजार-हजार
दस जोयणसयाई उड्ढं योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन योजन ऊंचे हैं । उच्चत्तेणं पण्णता।
प्रज्ञप्तानि ।
५६. सम्वेविणं जमगपव्वया दस-दस सवंऽपि यमकपर्वताः दश-दश
जोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं, योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, दश-दश दस-दस गाउयसयाई उम्वेहेणं, गव्यूतिशतानि उद्बधन, मूले दश-दश मुले दस-दस जोयणसयाई योजनशतानि आयामविष्कम्भेण आयामविक्खंभेणं पण्णता। प्रज्ञप्ताः ।
५६. सभी यमक पर्वत हजार-हजार योजन
ऊंचे, हजार-हजार गाउ गहरे और मूल में हजार-हजार योजन लम्बे-चौड़े
५७. एवं चित्त-विचित्तकला वि एवं चित्रविचित्रकूटान्यपि ५७. चित्रकूट और विचित्रकूट पर्वत' भाणियब्वा। भणितव्यानि ।
हजार-हजार योजन ऊंचे, हजार-हजार गाउ गहरे और मूल में हजार-हजार
योजन लम्बे-चौड़े हैं। ५८. सव्वेवि णं वट्टवेयपव्वया दस- सर्वेऽपि वृत्तवैताढ्यपर्वताः दश-दश ५८. सभी वृत्तवैताठ्यपर्वत हजार-हजार
दस जोयणसयाई उडढं उच्चतेणं, योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, दश-दश योजन ऊंचे, हजार-हजार गाउ गहरे, दस-दस गाउयसयाइं उब्वेहेणं, गव्यूतिशतानि उद्वेधेन, सर्वत्र समाः सर्वत्र सम तथा पल्य-संस्थान से सम्वत्थ समा पल्लगसंठाणसंठिया, पल्यकसंस्थानसंस्थिताः, मूले दश-दश संस्थित और मूल में हजार-हजार मूले दस-दस जोयणसयाई योजनशतानि आयामविष्कम्भेण योजन लम्बे-चौड़े हैं। विक्खं मेणं पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ताः । ५६. सव्वेवि णं हरिहरिस्सहकूडा सर्वाण्यपि हरि-हरिस्सहकूटानि ५६. वक्षस्कारकूट के अतिरिक्त सभी हरिकूट
वक्खारकडवज्जा दस-दस वक्षस्कारकूटवर्जानि दश-दश और हरिस्सहकूट हजार-हजार योजन जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, मूले ऊंचे और मूल में हजार-हजार योजन मुले दस जोयणसयाई विक्खंभेणं दशयोजनशतानि विष्कम्भेण चौड़े हैं। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्तानि । ६०. एवं बलकूडावि नंदणकूडवज्जा। एवं बलकूटान्यपि नन्दनकूटवर्जानि। ६०. नन्दनकूट के अतिरिक्त सभी बलकूट
हजार-हजार योजन ऊंचे और मूल में
हजार-हजार योजन चौड़े हैं। ६१. अरहा वि अरिटुनेमो दस अर्हन् अपि अरिष्टनेमिः दशवर्षशतानि ६१. अर्हत् अरिष्टनेमि हजार वर्षों की पूर्ण
वाससयाइं सव्वाउयं पालइत्ता सर्वायुष्कं पालयित्वा सिद्धः बुद्धः मुक्तः आयु' का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रहीणः। अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
दुःखों से रहित हुए। ६२. पासस्स णं अरहओ दस सयाई पार्श्वस्य अर्हतः दशशतानि जिनानां ६२. अर्हत् पार्श्व के हजार जिन (केवली) जिणाणं होत्था।
आसन् ।
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