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________________ समवाश्री २८. सव्वेवि णं वक्खारवव्वयकूडा सर्वाण्यपि वक्षस्कारपर्वतकुटानि हरिहरिस्सहकुटवर्जीनि पञ्च पञ्च योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, मूले पञ्च पञ्च योजनशतानि आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्तानि । हरि-हरि सहकूडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चतेणं, मूले पंच-पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता । २९. सव्वेवि णं नंदणकूडा बलकूडवज्जा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले पंच-पंच जोयणसा आयाम विक्खंभेणं पण्णत्ता । ३०. सोहम्मी सासु कप्पेसु बिमाणा पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तेणं पण्णत्ता । कप्पे विमाणा छ-छ जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । ३१. सणकुमार- माहिंदेसु ३२. चुल्ल हिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्ययस्स समे धरणितले, एस णं छ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पणते । ३३. एवं सिहरीकूडस्सवि । ३४. पारस णं अरहओ छ सया वाणं सदेवासुरे लोए बाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाइपया होत्या । ३५. अभिचंदे णं कुलगरे छ धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था । ३६. वासुपुज्जेणं अरहा छहि पुरिससहि सद्धि मुंडे भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइए । Jain Education International ३०७ सर्वाण्यपि नन्दनकूटानि बलकूटवर्जानि पञ्च पञ्च योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, योजनशतानि प्रज्ञप्तानि । मूले पञ्च पञ्च आयाम विष्कम्भेण सौधर्मेशानयोः कल्पयोः विमानानि पञ्च पञ्च योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । सनत्कुमार- माहेन्द्रयोः कल्पयोः विमानानि षट् षट् योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । क्षुल्ल हिमवत्कूटस्य उपरितनात् चरमान्तात् क्षुल्ल हिमवतः वर्षधर - पर्वतस्य समं धरणीतलं एतत् षट् योजनशतानि अबाधया अन्तरं प्रज्ञप्तम् एवं शिखरिकूटस्यापि । पार्श्वस्य अर्हतः षट्शतानि वादिनां सदेवमनुजासुरे लोके वादे अपराजितानां उत्कृष्टा वादिसम्पद् आसीत् । वासुपूज्य : अर्हन् षड्भिः पुरुषशतैः सार्द्धं मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः । प्रकीर्णक समवाय: सू० २८-३६ २८. हरि और हरिस्सह कूटों के अतिरिक्त वक्षस्कार पर्वतों के सभी कूट पांच सौ पांच सौ योजन ऊंचे तथा मूल में पांच सौ पांच सौ योजन लम्बे-चौड़े हैं । For Private & Personal Use Only २६. बलकूट के अतिरिक्त नन्दनवन के सभी कूट पांच सौ पांच सौ योजन ऊंचे तथा मूल में पांच सौ पांच सौ योजन लम्बेचोड़ हैं। ३०. सौधर्म और ईशान कल्पों में विमान पांच सौ पांच सौ योजन ऊंचे हैं। ३१. सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ छह सौ योजन ऊंचे हैं । ३२. क्षुल्ल हिमवत्कूट के उपरितन चरमान्त से क्षुल्लहिमवत् वर्षधर पर्वत के समभूतल का व्यवधानात्मक अन्तर छह सौ योजन का है । ३३. शिखरीकूट के उपरितन चरमान्त से शिखरी वर्षधर पर्वत के समभूतल का व्यवधानात्मक अन्तर छह सौ योजन का है। अभिचन्द्रः कुलकरः षट् धनुःशतानि ३५. कुलकर अभिचन्द्र छह सौ धनुष्य ऊंचे ' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन आसीत् । थे । ३४. अहं पार्श्व के उत्कृष्ट वादीसम्पदा छह सौ मुनियों की थी । वे देव, मनुष्य और असुरलोक में होने वाले किसी भी वाद में अपराजित थे । ३६ अर्हत् वासुपूज्य छह सौ पुरुषों के साथ मुंड होकर अगारवास से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए थे । www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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