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टिप्पण
१. चौरासी लाख नरकावास (चउरासीइं निरयावाससयसहस्सा )
चौरासी लाख नरकावासों का विवरण इस प्रकार है
पहली नारकी में ३० लाख, दूसरी में २५ लाख, तीसरी में १५ लाख, चौथी में १० लाख, पांचवीं में ३ लाख, छठी
में ६६६६५ और सातवीं में ५ नरकावास हैं। इनका कुल योग ८४ लाख है ।
२. चौरासी 'हजार योजन (चउरासीइंजोयणसहस्साइं )
जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के अतिरिक्त शेष चार मेरुपर्वतों की ऊंचाई चौरासी चौरासी हजार योजन की है ।
३. चौरासी हजार पद (चउरासीइं पयसहस्सा )
प्रस्तुत सूत्र में भगवती सूत्र के चौरासी हजार पद बतलाए गए हैं । किन्तु नन्दी सूत्रगत द्वादशांगी के वर्णन में उल्लिखित पद-परिमाण से इसकी संगति नहीं है । वहां भगवती के दो लाख अठासी हजार पद बतलाए हैं।' वृत्तिकार ने प्रस्तुत सूत्र में निर्दिष्ट मत को ध्यान में रख कर उसे 'मतान्तर' कहा है।' ये दोनों मत दों वाचनाओं के हो सकते हैं । ४. चौरासी हजार प्रकीर्णक (चोरासीइं पइण्णगसहस्सा )
भगवान् ऋषभ के चौरासी हजार शिष्य थे। नंदीसूत्र के अनुसार भगवान् ऋषभ के चौरासी हजार शिष्यों द्वारा रचित चौरासी हजार प्रकीर्णक थे ।
५. चौरासी लाख योनि प्रमुख ( चोरासीइं जोणिप्पमुहसयसहस्सा )
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योनि का अर्थ है 'उत्पत्ति-स्थान' और प्रमुख का अर्थ है 'द्वार' । योनि प्रमुख अर्थात् उत्पत्ति के द्वार ।
योनियां चौरासी लाख बतलाई गई हैं। उनका विवरण इस प्रकार है—
योनि-संख्या
स्थान
पृथ्वीकाय
अप्काय
तेजस्काय
१७ लाख
७ लाख
७ लाख
७ लाख
१० लाख
१४ लाख
२ लाख
२ लाख
२ लाख
नारक
४ लाख
देव
४ लाख
पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च
४ लाख
मनुष्य
१४ लाख
-- इन सबका कुल योग चौरासी लाख होता है ।
वायुकाय
प्रत्येक वनस्पति
साधारण वनस्पति
द्वीन्द्रिय
त्रीन्द्रिय
चतुरिन्द्रिय
१. नंदी, सू० ४८ ।
२. समवायांगवृत्ति पत्र ८५ :
व्याख्याप्रज्ञप्त्यां भगवत्यां चतुरशीतिः पदसहस्त्राणि पदाग्रेण पदपरिमाणेन मतांतरेण तु प्रष्टादश पदसहस्रपरिमाणत्वादाचा रस्थ, एतद् द्विगुणत्वात् शेषाङ्गानां, व्याख्याप्रज्ञप्तिद्वे लक्षे भ्रष्टाशीतिश्च सहस्राणीति पदानां भवतीति ।
३. नंदी, सू० ७८ ॥
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