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________________ ७२ बावत्तरिमो समवानो : बहत्तरवां समवाय हिन्दी अनुवाद १. सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख आवास' हैं। २. लवण समुद्र की बाह्य वेला' को बहत्तर हजार नागकुमार देव धारण करते हैं । संस्कृत छाया १. बावरि सुवण्णकुमारा- द्विसप्ततिः सुपर्णकुमारावासशतसहस्राणि वाससयसहस्सा पण्णता। प्रज्ञप्तानि । २. लवणस्स समुहस्स बावरि लवणस्य समुद्रस्य द्विसप्ततिः नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं नागसाहस्यः बाह्या वेलां धारयन्ति । धारंति। ३. समणे भगवं महावीरे बावरि श्रमणः भगवान् महावीरः द्विसप्तति वासाइं सम्वाउयं पालइत्ता सिद्धे वर्षाणि सर्वायुष्क पालयित्वा सिद्धः बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे बुद्धः मुक्तः अन्तकृत: परिनिर्वृतः सव्वदुक्खप्पहीणे। सर्वदुःखपहीणः। ४. थेरे गं अयलभाया बावरि स्थविरः अचलभ्राता द्विसप्तति वर्षाणि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे सर्वायुष्कं पालयित्वा सिद्धः बुद्ध: मुक्तः बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिध्वुडे अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रहीणः। सव्वदुक्खप्पहीणे। ३. श्रमण भगवान् महावीर बहत्तर वर्ष के सर्व आयुष्य का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। ४. स्थविर अचलभ्राता' बहत्तर वर्ष के सर्व आयुष्य का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत्त हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। ५. अन्भंतरपुक्खरद्धे णं बावरि आभ्यन्तरपुष्कराद्ध द्विसप्ततिः चन्द्रा: ५. आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध में बहत्तर चन्द्र चंदा पभासिंस वा पभासेंति वा प्राभासिषत वा प्रभासन्ते वा प्रभासित हुए थे, होते हैं और होंगे। पभासिस्संति वा, बावरि सूरिया प्रभासिष्यन्ते वा, द्विसप्ततिः सूर्याः आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध में बहत्तर सूर्य तपे तविस वा तवेंति वा तविस्संति अतपन वा तपन्ति वा तपिष्यन्ति वा। थे, तपते हैं और तपेंगे। वा। ६. एगमेगस्स णं रणो एकैकस्य राज्ञः चातुरन्तचक्रवर्तिनः ६. प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावरि द्विसप्ततिः पुरवरसाहस्रयः प्रज्ञप्ताः । बहत्तर हजार पुर होते हैं । पुरवरसाहस्सोओ पण्णत्ताओ। ७. बावरि कलाओ पण्णत्ताओ, द्विसप्ततिः कला: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ७. कलाएं बहत्तर हैं, जैसे तं जहा१. लेहं लेखः १. लेख-लिपि कला और लेख विषयक कला। २. गणियं गणितं २. गणित-संख्या कला। रूपं ३. रूप-रूप निर्माण कला www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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