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________________ ७० सत्तरिमो समवायो : सत्तरवां समवाय मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. समणे भगवं महावीरे वासाणं श्रमणः भगवान् महावीरः वर्षाणां १. श्रमण भगवान् महावीर वर्षाऋतु के सवीसइराए मासे वोतिक्कते सविंशतिरात्रे मासे व्यतिक्रान्ते सप्तत्यां पचास दिन-रात बीत जाने तथा सत्तर सत्तरिए राइंदिरहिं सेसेहिं रात्रिन्दिवेषु शेषेषु वर्षावासं परिवसति। दिन-रात शेष रहने पर वर्षावास के वासावासं पज्जोसवेइ। लिए पर्युषित (स्थित) हुए। २. पासे णं अरहा पुरिसादाणीए पार्श्वः अर्हन् पुरुषादानीय: सप्तति २. पुरुषादानीय अहंद पार्श्व सम्पूर्ण सत्तर सरि वासाई बहुपडिपुण्णाई वर्षाणि बहुप्रतिपूर्णानि श्रामण्यपर्यायं वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन कर सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्ध प्राप्य सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुड़े परिनिर्वृतः सर्वदुःखप्रहीणः । परिनिर्वृत तथा सर्वदुःखो से रहित सव्वदुक्खप्पहोणे। ३. वासुपुज्जे णं अरहा सरि घणूई वासुपूज्यः अर्हन् सप्तति धनूंषि ३. अर्हत् वासुपूज्य सत्तर धनुष्य ऊंचे थे। उड्ढं उच्चत्तेणं होत्या। ऊर्ध्वमुच्चत्वेन आसीत् । ४. मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स सरि मोहनीयस्य कर्मणः सप्ततिं सागरोपम- ४. मोहनीय कर्म की अबाधाकाल से न्यून सागरोवमकोडाकोडीओ अबाहू- कोटिकोटी: अबाधोनिका कर्मस्थितिः (सात हजार वर्ष कम) सत्तर कोडाणिया कम्मठिर्ड कम्मणिसेगे कर्मनिषेक: प्रज्ञप्तः । कोड सागर की स्थिति उसका निषेकपण्णत्ते। काल (उदयकाल) होता है। ५. माहिंदस्स णं देविंदस्स देवरणो माहेन्द्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सप्ततिः ५. देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र के सत्तर हजार सरि सामाणियसाहस्सीओ सामानिकसाहस्यः प्रज्ञप्ताः । समानिक देव हैं। पण्णत्ताओ। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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