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टिप्पण
प्रस्तुत आलापक का उल्लेख है कि धातकीषंड में उत्कृष्टत: अड़सठ चक्रवर्ती, अड़सठ वासुदेव होते हैं। वृत्तिकार ने इस संख्या की आलोचना प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि अड़सठ चक्रवर्ती और वासुदेव एक साथ होना संभव नहीं है । जहां चक्रवती होते हैं वहा वासुदेव नहीं होते और जहां वासुदेव होते हैं वहा चक्रवर्ती नहीं होते। यह संख्या अड़सठ विजयों में उनके होने की संभावना से दी गई है। अन्यथा साठ चक्रवर्ती और आठ वासुदेव या साठ वासुदेव और आठ चक्रवर्ती ही एक साथ भिन्न-भिन्न विजयों में हो सकते हैं । अड़सठ कभी नहीं होते।' ___ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति (७/१९६, २००) में जंबूद्वीप में तीस चक्रवर्ती, तीस वासुदेव होने का उल्लेख प्राप्त है। इससे भी उपरोक्त समालोचना ही सिद्ध होती है। समवाय ३४/४ में तथा जम्बूद्वीप में उत्कृष्टतः चौंतीस तीर्थकरों के होने का ही उल्लेख है।
१. समवायांगवृत्ति, पन्न ७५,७६ :
यद्यपि चक्रवतिनां वासुदेवानां नैकदा प्रष्टषष्टिः सम्भवति यतो जघन्यतोऽप्येककस्मिन् महाविदेहे चतुर्णा चतुर्णा तीर्थंकरादीनामवश्यं भावः स्थानाङ्गदिष्वभिहितः, न चैकक्षेने चक्रवर्ती वासुदेवश्चकदा भवतोऽतः अष्टषष्टिरेवोत्कर्षतश्चक्रवतिना वासुदेवानां चाष्टषष्ट्यां विजयेषु भवति तघापीह सूत्र एक समयेनेत्यविशेषणात कालभेदभाविनां चक्रवत्यादीनां विजयभेदेनाष्टषषिविरुद्धा, अभिलप्यन्ते च जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्या भारतकच्छाचभिलापेन चक्रवतिन इति ।
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