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________________ परणसट्ठिमो समवायो : पैंसठवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. जंबुद्दीवे णं दीवे पणदि सूरमंडला जम्बूद्वीपे द्वोपे पञ्चषष्ठिः सूरमंडलानि १. जम्बूद्वीप द्वीप में सूर्यमंडल पैंसठ है।' पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि । २. थेरेणं मोरियपुत्ते पणसद्विवासाइं स्थविरः मौर्यपुत्रः पञ्चषष्ठिवर्षाणि २. स्थविर मौर्यपुत्र पैसठ वर्ष तक अगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगारमध्युष्य मुण्डो भूत्वा अगारात् अगारवास में रह कर, मुंड होकर, अगाराओ अणगारियं पव्वइए। अनगारितां प्रव्रजितः । अगार अवस्था से अनगार अवस्था में प्रवजित हुए। ३. सोहम्मवडेंसयस्स गं विमाणस्स सौधर्मावतंसकस्य विमानस्य एकैकस्मिन् एगमेगाए बाहाए पटिठ- बाहौ पञ्चषष्ठिः- पञ्चषष्ठिः भौमानि पणसट्ठि भोमा पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि । ३. सौधर्मावतंसक विमान की प्रत्येक वाहा (शाखा) में पैंसठ-पैसठ भौम हैं। टिप्पण १. सूर्यमंडल पैंसठ हैं (पणढि सूरमंडला) देखें-समवाय ६३ का १, २ टिप्पण । १. पैंसठ वर्ष (पणसद्विवासाई) यहां मौर्यपुत्र का गृहस्थ-पर्याय पैंसठ वर्ष का बतलाया गया है। ये भगवान् महावीर के सातवें गणधर थे। छठे गणधर मंडितपुत्र मौर्यपुत्र के बड़े भाई थे। उनका गृहस्थ-पर्याय तिरपन वर्ष का था। ये दोनों एक साथ हुए थे । आवश्यकनियुक्ति में 'तेवन्न पणसट्ठि' पाठ है। आचार्य मलयगिरि ने इसका व्यत्यय कर मंडितपुत्र का गृहस्थ-पर्याय पैसठ वर्ष का और मौर्यपुत्र का तिरपन वर्ष का प्रमाणित किया है। आचार्य अभयदेव सूरि ने भी यही संभावना की है। यदि हम अर्थ की संगति बैठाते हैं तो पाठ विसंगत हो जाता है। अतः यह संभावना अधिक संगत हो सकती है कि लिपि-दोष से 'मंडियपुत्ते' के स्थान में 'मोरियपुत्ते' पाठ हो गया। १. मावश्यकनियुक्ति, मलयगिरिवृत्ति, पत्र २३६ । २ समवायांगवृत्ति, पत्र ७३.७४ : मोर्यपुत्रो भगवतो महावीरस्य सप्तमो गण रस्तस्य पञ्चषष्ठिवर्षाणि गृहस्थपर्यायः, प्रविश्यकेप्येवमेवोक्तो, नवरमेतस्येव यो बृहत्तरो भ्राता मण्डितपुनामिधानं षष्ठी मणधरः तद्दीक्षादिन एव प्रवजितस्तस्यावश्यके त्रिपञ्चाशद्वर्षाणि गृहस्थपर्याय उक्तो न च बोधविषयमपगच्छति यतो बहत्तरस्य पञ्चषष्ठियुज्यते लघुतरस्य निपञ्चाशदिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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