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टिप्पण
१. तीन गणिपिटकों के अध्ययन (तिण्हं गणिपिडगाणं. अन्झयणा)
आचारांग के दो श्रुतस्कंध हैं। उसका अन्तिम अध्ययन है 'विमुक्ति'। यहां आचारचूला के रूप में यही विवक्षित है। उसे छोड़ देने पर आचारांग के चौबीस अध्ययन शेष रहते हैं। तीनों अंगों के सत्तावन अध्ययन इस प्रकार हैं१. आचारांग (प्रथम श्रुतस्कंध)- अध्ययन
(द्वितीय श्रुतस्कंध)२. सूत्रकृतांग (प्रथम श्रुतस्कंध)- १६ ॥
4 (द्वितीय श्रुतस्कंध)३. स्थानांग
कुल-५७ अध्ययन
१ समवायांगवत्ति, पत्न ६६, ७०
प्राचारस्य श्रुतस्कंधद्वयरूपस्य प्रथमांगस्य चुलिका-सर्वान्तिममध्ययनं विमुक्त्यभिधानमाचारचूलिका तद् वर्जा, तत्राचारे प्रयमश्रुतस्कंधे नवाध्ययनानि, द्वितीये षोडश निशीथाध्ययनस्य प्रस्थानान्तरत्वेन इहानाश्रयणात्, षोडशानां मध्ये एकस्याचारचूलिकेति परिहृतत्वात शेषाणि पञ्चदश, सूत्रकृते द्वितीयाङ्गे प्रथमश्रुतस्कधे षोडश, द्वितीये सप्त, स्थानके दशेत्येवं सप्तपञ्चाशदिति ।
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