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________________ ५७ सत्तावण्णइमो समवायो : सत्तावनवां समवाय संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद १. तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचलिया- त्रयाणां गणिपिटकानां आचारचूलिका- १. आचारचूलिका को छोड़ कर तीन वज्जाणं सत्तावणं अज्झयणा वर्जानां सप्तपञ्चाशद् अध्ययनानि गणिपिटकों-आचार, सूत्रकृत और पण्णत्ता, तं जहा-आयारे सूयगडे प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-आचारः सूत्रकृतं स्थान के सत्तावन अध्ययन हैं।' ठाणे। स्थानम् । २. गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स गोस्तूपस्य आवासपर्वतस्य पौरस्त्यात् २. गोस्तूप आवास-पर्वत के पूर्वी पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ चरमान्तात् वडवामुखस्य महापातालस्य चरमान्त से वडवामुख महापाताल वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमध्यदेशभागः, एतत् सप्तपञ्चाशद् कलश के बहुमध्यदेशभाग का बहुमज्झदेसभाए, एस गं सत्ता- योजनसहस्राणि अबाधया अन्तरं व्यवधानात्मक अन्तर सत्तावन हजार वणं जोयणसहस्साई अबाहाए प्रज्ञप्तम् । योजन का है। अंतरे पण्णत्ते। ३. एवं दोभासस्स (णं?) केउयस्स एवं दकावभासस्य केतकस्य च. शंखस्य य, संखस्स जयकस्स य, दयसीमस्स यूपकस्य च, दकसीमस्य ईश्वरस्य ईसरस्सय। च । दक्षिणी चरमान्त से केतुक महापाताल कलश के बहुमध्यदेशभाग का, शंख आवास-पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से यूप महापाताल कलश के बहुमध्यदेशभाग का और दकसीम आवास-पर्वत के उत्तरी चरमान्त से ईश्वर महापाताल कलश के बहुमध्यदेशभाग का व्यवधानात्मक अन्तर सत्तावन-सत्तावन हजार योजन का है। ४. मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावण्णं मल्ल्याः अर्हतः सप्तपञ्चाशद् मणपज्जवनाणिसया होत्था। मनःपर्यवज्ञानिशतानि आसन्। ४. अर्हत् मल्ली के सत्तावन सौ मनःपर्यवज्ञानी थे। ५. महाहिमवान तथा रुक्मी-इन दो वर्षधर पर्वतों की प्रत्येक जीवा के धनु: ५. महाहिमवंतरुप्पीणं वासधरपव्व- महाहिमवद्रुक्मिणोः वर्षधरपर्वतयोः याणं जीवाणं धणुपट्टा सत्तावणं- जीवयोः धनुःपृष्ठानि सप्तपञ्चाशत्सत्तावण्णं जोयणसहस्साइं दोण्णि सप्तपञ्चाशत् योजनसहस्राणि द्वे च य तेणउए जोयणसए दस य त्रिनवतियोजनशते दश च एकोनएगणवीसइभाए जोयणस्स विंशतिभागं योजनस्य परिक्षेपेण परिक्खेवेणं पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि। पृष्ठ की परिधि ५७२६३१० योजन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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