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________________ समवाश्रो २०८ ८. • महालियाए णं विमाणपविभत्तीए महत्यां विमानप्रविभक्तौ पञ्चमे वर्गे पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसण पञ्चचत्वारिंशद् उद्देशनकालाः काला पण्णत्ता | प्रज्ञप्ताः । १. सीमंतक ( सोमंतए) टिप्पण पहली नरक पृथ्वी के पहले प्रस्तट के मध्यभाग में जो गोल नरकेन्द्र है, उसे 'सीमन्तक' कहते हैं । ' २. उडुविमान (उडुविमाणे ) सौधर्म और ईशान देवलोक के प्रथम प्रस्तटवर्ती, चार विमानावलियों के मध्यभागवर्ती गोलाकार विमान केन्द्र को 'उडुविमान' कहते हैं । ' ३. द्वयर्धक्षेत्र (दिवडखेत्तिया ) चन्द्रमा के तीस मुहूर्त्त में भोगे जाने वाले नक्षत्र क्षेत्र को 'सम - क्षेत्र' कहते हैं । पैंतालीस मुहूर्त्त ( ३० + १५ ) तक चन्द्रमा के साथ योग करते हैं।' १. समवायांगवृत्ति, पत्र ६५ : प्रथमपृथिव्यां प्रथमप्रस्तटे मध्यभागवशीं वृत्तो नरककेन्द्र: सीमन्तक इति । समवाय ४५ : सू० ८ ८. महतीविमानप्रविभक्ति के पांचवें वर्ग में पैंतालीस उद्देशन - काल हैं । Jain Education International २. दही, पन ६५ : सौधर्मेशानयो: प्रथमप्रस्तटवश चतसृणां विमानावलिकानां मध्यभागवत वृत्तं विमानकेन्द्रकमुडुविमानमिति । ३. बही, पत्र ६५ : चन्द्रस्य विशन्मुहसंभोग्यं नक्षत्रक्षेत्रं समयक्षेत्रमुच्यते, तदेव सार्द्धं द्वघद्ध द्वितीयमर्द्ध मस्येति द्वयद्ध मित्येवं व्युत्पादनात् तथाविधं क्षेत्रं येषामस्ति तानि द्वयर्द्धक्षेत्राणि नक्षत्राणि, प्रतएव पञ्चचत्वारिंशन्मुहूर्ताः चन्द्रेण सार्द्धं योगः-- सम्बन्धी योजितवन्ति । For Private & Personal Use Only ऐसे द्वय्र्ध ( डेढ़ ) सम - क्षेत्र के नक्षत्र www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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