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भगवान महावीर ने अन्तिम रात्रि में कल्याण-फलविपाक वाले पचपन अध्ययन तथा पाप-फलविपाक वाले पचपन अध्ययन प्रतिपादित कर मुक्त हो गए।
इन सूत्रों को पढते ही मन जिज्ञासा से भर जाता है। कितना अच्छा होता कि इन प्रश्नों के उत्तर और ये अध्ययन आज प्राप्त होते । अन्य अनेक दृष्टियों से यह सूत्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। कार्य-सम्पूर्ति
प्रस्तुत आगम की समग्र निष्पत्ति में अनेक मुनियों का योग रहा है । उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं कि उनकी कार्यजाशक्ति और अधिक विकसित हो।
इसकी निष्पत्ति का बहुत कुछ श्रेय शिष्य युवाचार्य महाप्रज्ञ (मुनि नथमल) को है क्योंकि इस कार्य में अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । आगम का कार्य करते-करते अन्तर् रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनकी कार्यक्षमता और कर्तव्य-परायणता ने मुझे बहुत सन्तोष दिया है।
मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे शिष्य साधु-साध्वियों के निःस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत कार्य को असाधारणरूप से सम्पन्न कर सकूँगा।
लाडनूं १-१-८४
-आचार्य तुलसी
१. समवामो, ५५/समणे भगवं महावीरे अन्तिमराइयंसि पणपण्णं प्रज्झयमाई कल्लाणफलविवागाई पणपण्णं अज्झयणाणि पावफलविवागाणि वागरिता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिबुडे सम्बदुक्खप्पहीथे।
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