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________________ भूमिका जैन साहित्य में द्वादशांगी को सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त है। प्रस्तुत सूत्र उसका चतुर्थ अंग है। इसका नाम समवाय है। इसमें विविध विषय समवेत हैं, इसलिए यह सार्थक नाम है। इसके परिच्छेदों का नाम भी समवाय है। प्रथम समवाय में एक संख्या द्वारा संगृहीत विषय प्रतिपादित हैं। इसी प्रकार दूसरे में दो और तीसरे में तीन की संख्या द्वारा संगृहीत विषय प्रतिपादित हैं। सौ समवायों तक यह क्रम बराबर चलता है। उससे आगे डेढ सौ, दो सौ, ढाई सौ, तीन सौ-इस प्रकार संख्या बढ़ती जाती है। अंत में वह एक कोटि-कोटि सोगरोपम तक पहुंच जाती है। यहां संख्यापरक समवायपूर्ण हो जाता है। समवाय का मूलभाग इतना ही है। इससे आगे द्वादशांगी का प्रकरण है। उसके पश्चात् अनेक प्रकीर्ण विषयों का संकलन है । ये दोनों प्रकरण मूल सूत्र के परिशिष्ट हैं। प्रस्तुत सूत्र संग्रहसूत्र की कोटि का है। इसमें अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का संकलन हआ है। योग का एक सिद्धान्त है-दीर्घश्वास से आयु दीर्घ होता है। तेतीस समवायों के अंतिम सूत्रों में इसका व्यवस्थित क्रम मिलता है श्वास-कालमान आयु-कालमान आहारेच्छा-कालमान श्वास-कालमान आयु-कालमान आहारेच्छा-कालमान १ पक्ष १ सागरोपम १ हजार वर्ष ९ मास १८ सागरोपम १८ हजार वर्ष १ मास २ सागरोपम २ हजार वर्ष ॥ मास १६ सागरोपम १६ हजार वर्ष १॥ मास ३ सागरोपम ३ हजार वर्ष १० मास २० सागरोपम २० हजार वर्ष २ मास ४ सागरोपम ४ हजार वर्ष १०॥ मास २१ सागरोपम २१ हजार वर्ष २॥ मास ५ सागरोपम ५ हजार वर्ष ११ मास २२ सागरोपम २२ हजार वर्ष ३ मास ६ सागरोपम ६ हजार वर्ष ११॥ मास २३ सागरोपम २३ हजार वर्ष ३|| मास ७ सागरोपम ७ हजार वर्ष १ वर्ष २४ सागरोपम २४ हजार वर्ष ४ मास ८ सागरोपम ८ हजार वर्ष १ बर्ष १ पक्ष २५ सागरोपम २५ हजार वर्ष ४॥ मास ६ सागरोपम ६ हजार वर्ष १ वर्ष १ मास २६ सागरोपम २६ हजार वर्ष ५ मास १० सागरोपम १० हजार वर्ष १ वर्ष १॥ मास २७ सागरोपम २७ हजार वर्ष || मास ११ सागरोपम ११ हजार वर्ष १ वर्ष २ मास २८ सागरोपम २८ हजार वर्ष ६ मास १२ सागरोपम १२ हजार वर्ष १ वर्ष २॥ मास २६ सागरोपम २६ हजार वर्ष ६॥ मास १३ सागरोपम १३ हजार वर्ष १ वर्ष ३ मास ३० सागरोपम ३० हजार वर्ष ७ मास १४ सागरोपम १४ हजार वर्ष १ वर्ष ३।। मास ३१ सागरोपम ३१ हजार वर्ष ७॥ मास १५ सागरोपम १५ हजार वर्ष १ वर्ष ४ मास ३२ सागरोपम ३२ हजार बर्ष ८ मास १६ सागरोपम १६ हजार वर्ष १ वर्ष ४॥ मास ३३ सागरोपम ३३ हजार वर्ष ८॥ मास १७ सागरोपम १७ हजार वर्ष प्रस्तुत सूत्र में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की सूचना मिलती है, जैसे-भगवान् महावीर ने एक दिन में एक निषया में चौवन प्रश्नों के उत्तर दिए थे। १. समवानो, ४/: समये भगवं महावीरे एग दिवसेणं एग निसेज्जाए चतपण्याई बागरणाई वागरित्या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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