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________________ समवायो १४६ समवाय २८ : सू० ४-६ सोतिदियावाते चक्खिदियावाते श्रोत्रेन्द्रियावायः चक्षुरिन्द्रियावाय: घाणिदियावाते जिभिदियावाते घ्राणेन्द्रियावायः जिह्वन्द्रियावायः फासिदियावाते णोइंदियावाते। स्पर्शेन्द्रियावायः नोइन्द्रियावायः । श्रोत्रेन्द्रिय अवाय, चाइन्द्रिय अवाय, घ्राणेन्द्रिय अवाय, रसनेन्द्रिय अवाय, स्पर्शनेन्द्रिय अवाय, नो-इन्द्रिय अवाय । सोइंदियधारणा चक्खिदिय- श्रोत्रेन्द्रियधारणा चक्षुरिन्द्रियधारणा धारणा घाणिदियधारणा जिब्भि- ध्राणेन्द्रियधारणा न्द्रियधारणा दियधारणा फासिदियधारणा स्पर्शेन्द्रियधारणा नोइन्द्रियधारणा । णोइंदियधारणा। श्रोत्रेन्द्रिय धारणा, चक्षुइन्द्रिय धारणा, घ्राणेन्द्रिय धारणा, रसनेन्द्रिय धारणा, स्पर्शनेन्द्रिय धारणा और नो-इन्द्रिय धारणा। ४. ईसाणे णं कप्पे अदावीसं विमाणा- ईशाने कल्पे अष्टाविशीतः विमाना- वाससयसहस्सा पण्णत्ता। वासशतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । ४. ईशानकल्प में अठाईस लाख विमाना. वास हैं। ५. जीवे णं देवगति णिबंधमाणे जीवः देवति निबध्नन् नाम्नः कर्मणः नामस्स कम्मस्स अट्रावीसं उत्तर- अष्टाविंशति उत्तरप्रकृती: निबध्नाति, पगडीओ णिबंधति, तं जहा- तद्यथादेवगतिनामं पंचिदियजातिनामं देवगतिनाम पञ्चेन्द्रियजातिनाम बेउब्वियसरीरनाम तेययसरीर- वैक्रियशरीरनाम तेजस्कशरीरनाम नाम कम्मगसरोरनाम समचउरंस. कर्मकशरोरनाम समचतुरस्रसंस्थाननाम संठाणनामं वे उब्वियसरीरंगोवंग- वैक्रियशरीराङ्गोपाङ्गनाम वर्णनाम नाम वण्णनामं गंधनाम रसनामं गन्धनाम रसनाम स्पर्शनाम देवानुपूर्वीफासनामं देवाणपुग्विनामं अगरुय. नाम अगूरुकलघकनाम उपघातनाम लहयनाम उवघायनामंपराघायनाम पराघातनाम उच्छवासनाम प्रशस्तऊसासनामं पसत्थविहायगइनामं विहायोगतिनाम सनाम बादरनाम तसनामं बायरनाम पज्जत्तनामं पर्याप्तनाम प्रत्येकशरीरनाम स्थिरा. पत्तेयसरोरनामं थिराथिराणं स्थिरयोर्द्वयोरन्यतरमेकं नाम निबध्नाति, दोण्हमण्णयरं एगं नामं णिबंधइ, शुभाशुभयोर्द्वयोरन्यतरमेक नाम सुभासुभाणं दोण्हमण्णयरं एग नामं निबध्नाति, सुभगनाम सुस्वरनाम णिबंधइ, सुभगनाम सुस्सरनाम, आदेयानादेययोर्द्वयोरन्यत रमेकं नाम आएज्जअगाएज्जाणं दोण्हं निबध्नाति, यशःकीत्तिनाम निर्माणनाम। अण्णयरं एग नाम णिबंधइ, जसोकित्तिनाम निम्माणनाम। ५. देवगति का बंध करता हुआ जीव नाम कर्म की अठाईस उत्तरप्रकृतियों का बंध करता है, जैसे - देवगतिनाम, पंचेन्द्रियजातिनाम, वक्रियशरीरनाम, तेजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, समचतुरस्त्रसंस्थाननाम, वैक्रियशरीरअंगोपांगनाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, देवानुपूर्वीनाम, अगुरुलधुनाम, उपधातनाम पराघातनाम, उच्छवासनाम, प्रशस्तविहायोगतिनाम, वसनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम और अस्थिरनाम- दोनों में से एक, शुभनाम और अशुभनाम--दोनों में से एक, सुभगनाम, सुस्वरनाम, आदेवनाम और अनादेवनाम --दोनों में से एक, यश:कीत्तिनाम और निर्माणनाम । ६. एवं चेव नेरइयेवि, नाणत्तं एवं चैव नरयिकोऽपि नानात्वं अप्रशस्त अप्पसत्यविहायगइनाम हुंडसंठाण- विहायोगतिनाम हुण्डसंस्थाननाम नाम अथिरनाम दुन्भगनाम अस्थिरनाम दुर्भगनाम अशुभनाम अशुभनामं दुस्सरनाम अणादेज्ज- दुःस्वरनाम अनादेयनाम अयशःोत्तिनाम अजसोकित्तीनाम। नाम। ६. इसी प्रकार नरकगति का बंध करता हुआ जीव नामकर्म की अठाईग उत्तरप्रकृतियों का बंध करता है, जैसेनरकगतिनाम, पंचेन्द्रियजातिनाम, वैक्रियशरीरनाम, तेजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, हुंडकसंस्थाननाम, वैक्रियशरीरअंगोपांगनाम, वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, नरकानुपूर्वीनाम, अगुरुलधुनाम, उपधातनाम, पराधातनाम, उच्छवासनाम, अप्रशस्तविहायोगतिनाम, सनाम, बादरनाम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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