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________________ समवायो समवाय २७ : सू० १५ १५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये १५. कुछ भव-सिद्धिक जीव सत्ताईस बार सत्तावीसाए भवग्गणेहि सिज्झि- सप्तविंशत्या भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और स्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति । अन्त करेंगे। करिस्संति। टिप्पण १. अभिजित् नक्षत्र को छोड़कर (अभिइवज्जेहिं) उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चौथे पाये में अभिजित् नक्षत्र का समावेश हो जाता है, अतः इसे अलग गिनने की आवश्यकता नहीं रहती। २. वियोजन (उवरय) वृत्तिकार ने यहां 'उवरय' की व्याख्या 'उव्वलय' पाठ की कल्पना कर की है। अर्थ की दृष्टि से विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यहां 'उब्बलय' पाठ होना चाहिए । आदर्शों में 'उन्वलय' पाठ प्राप्त नहीं है । वृत्तिकार के सामने भी यही कठिनाई रही है। इसका समाधान उन्होंने 'प्राकृतत्वात् उब्बलय (उद्वलक)' मानकर किया है।' यद्यपि 'उवरय' और 'उव्वलय' में रूपगत एकता नहीं है, किन्तु अर्थ की कठिनाई के कारण वृत्तिकार को ऐसा मानना पड़ा। ३. सत्ताईस कर्माश (सत्तीवीसं कम्मंसा) मोहनीयकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां हैं। उनमें से एक प्रकृति (सम्यक्त्व मोहनीय) का वियोजन होने पर शेष सत्ताईस प्रकृतियां सत्ता में रहती हैं।' ४. श्रावण शुक्ला सप्तमी (सावण-सुद्ध-सत्तमीए") इसका तात्पय है कि श्रावण शुक्ला सप्तमी से दिन छोटे और रात बड़ी होने लग जाती है। आषाढ़ी पूर्णिमा को चौबीस अंगुल प्रमाण छाया का प्रहर होता है और प्रति सात दिन में एक अंगुल से कुछ अधिक छाया बढ़ती है। इस गणित से श्रावण शुक्ला सप्तमी तक तीन अंगुल से कुछ अधिक छाया बढ़ती है और उस दिन सत्ताईस अंगुल प्रमाण छाया का प्रहर होता है। यह व्यवहार की बात है। वास्तव में कर्क संक्रान्ति से सातिरेक इक्कीसवें दिन में यह सत्ताईस अंगल प्रमाण छाया का प्रहर होता है।" १. समवायांगवृत्ति, पन्न ४५॥ २. वही, पन्न १५। ३. वही, पत्र ४५। ४. वही, पत्न ४५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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