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________________ समवाश्रो १. श्रोत्रेन्द्रिय राग की उपरति २. चक्षु इन्द्रिय राग की उपरति ३. घ्राणेन्द्रिय राग की उपरति ४. रसनेन्द्रिय राग की उपरति ५. स्पर्शनेन्द्रिय राग की उपरति आवश्यक नियुक्ति अवचूर्ण में पचीस भावनाएं इस प्रकार निर्दिष्ट हैं प्रथम महाव्रत की भावनाएं १. इर्यासमिति में सदा संयमशीलता २. देखकर पान भोजन करना ३. आदाननिक्षेपसमिति का पूर्ण पालन ४. मन का सम्यक् प्रवर्तन ५. वचन का सम्यक् प्रवर्तन द्वितीय महाव्रत की भावनाएं १. हास्य में भी असत्य का वर्जन २. अनुवीचि भाषणता ३. क्रोध का प्रत्याख्यान ४. लोभ का प्रत्याख्यान ५. भय का प्रत्याख्यान १४१ ५. अपरिग्रह महाव्रत की भावनाएं १. मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द में समभाव' २. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में समभाव ३. मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्ध में समभाव ४. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रस में समभाव ५. मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श में समभाव ३. आचारांग (आयारस्स) १. प्रश्नव्याकरण, १० / १३-१८। २. श्रावश्यक निर्युक्ति, अवचूर्णि भाग - २, पृ० १३४, १३५ . ३. समवायांगवृत्ति, पत्र ४३ । Jain Education International समवाय २५ : टिप्पण १. मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द में समभाव २. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में समभाव ३. मनोज और अमनोज गन्ध में समभाव ४. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रस में समभाव ५. मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श में समभाव चतुर्थ महाव्रत को भावनाएं तृतीय महाव्रत की भावनाएं १. गृहस्वामी की आज्ञा से अवग्रह का उपभोग २. गृहस्वामी की आज्ञा से तृण आदि का ग्रहण ३. अनुज्ञात अवग्रह का उपभोग ४. गुरु आदि को दिखाकर पान - भोजन का ग्रहण ५. साधर्मिकों से अवग्रह की याचना कर बैठना २. अवग्रह (उग्गहं) अवग्रह का अर्थ है— ग्रहण करने योग्य उपकरण । यहां उन उपकरणों के लिए संकेत दिया गया है जो क्षेत्र और काल की सीमा के साथ लिए जाते हैं और सीमा पूर्ण होने पर पुन: लौटा दिए जाते हैं। उदाहरण स्वरूप साधु किसी आवास में रहता तो वह पहले आवास के अधिकारी से वहां रहने के लिए आज्ञा प्राप्त करता, फिर आवास के कितने भाग में और कितने समय तक – इन दोनों सीमाओं को स्पष्ट करता, फिर उसमें रहता। कोई आवास साधर्मिक साधुओं द्वारा पहले से याचित होता तो वह उनकी अनुमति से वहां रहता । इसी प्रकार पट्ट, घास का बिछौना आदि भी अवग्रह-विधि से व्यवहार में लाए जाते । ' १. आहारगुप्त २. अविभूषितात्मा ३. स्त्रियों के अवलोकन का वर्जन ४. स्त्रियों के संसक्त वसति का वर्जन ५. स्त्रियों की कथा का वर्जन पंचम महाव्रत की भावनाएं १. मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द में समभाव २. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप में समभाव ३. मनोज्ञ और अमनोज्ञ रस में समभाव ४. मनोज्ञ और अमनोज्ञ गंध में समभाव ५. मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्श में समभाव आचारांग के नौ अध्ययन हैं। उसके पांच चूलाएं हैं। उनमें से चार चुलाएं आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कंध के रूप में संकलित हैं और पांचवीं चूला 'निशीथ सूत्र' है। चार चूलाओं के सोलह अध्ययन हैं। प्रस्तुत पाठ में 'निशीथ' विवक्षित नहीं है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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