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________________ टिप्पण १. पचीस भावनाओं (पणवीसं भावणाओ) पांच महाव्रतों की सुरक्षा के लिए पचीस भावनाएं हैं। प्रश्नव्याकरण तथा आचारचूला (१५/४३-७८) में भी पचीस भावनाओं का उल्लेख है । प्रस्तुत आगम में उल्लिखित भावनाओं से वे कुछ भिन्न हैंसमवायाङ्ग प्रश्नव्याकरण आचारचूला १. अहिंसा महाव्रत की भावनाएं १. ईर्यासमिति १. ईर्यासमिति' १. ईर्यासमिति २. मनोगुप्ति २. अपापमन (मनसमिति) २. मन परिज्ञा ३. वचनगुप्ति ३. अपापवचन (वचनसमिति) ३. वचन परिज्ञा ४. आलोक-भाजन-भोजन ४. एषणासमिति ४. आदान-निक्षेप समिति ५. आदान-भांडामत्र-निक्षेपणा समिति ५. आदाननिक्षेपसमिति ५. आलोकित-पान-भोजन २. सत्य महाव्रत की भावनाएं १. अनुवीचिभाषणता १. अनुवीचिभाषण' १. अनुवीचिभाषण २. क्रोध विवेक २. कोध प्रत्याख्यान २. क्रोध प्रत्याख्यान ३. लोभ विवेक ३. लोभ प्रत्याख्यान ३. लोभ प्रत्याख्यान ४. भय विवेक ४. अभय (भय-प्रत्याख्यान) ४. अभय ५. हास्य विवेक ५. हास्य प्रत्याख्यान ५. हास्य प्रत्याख्यान ३. अचौर्य महाव्रत की भावनाएं १. अवग्रहानुज्ञापना १. विविक्तवास वसति' १. अनुवीचि मितावग्रहयाचन २. अवग्रहसीमाज्ञान २. अभीक्ष्ण अवग्रहयाचन २. अनुज्ञापित पान-भोजन ३. स्वयमेव अवग्रह अनुग्रहणता ३. शय्यासमिति ३. अवग्रह का अवधारण ४. सार्मिक अवग्रह अनुज्ञाप्य परिभोग ४. साधारण पिण्डपात्र लाभ ४. अभीक्ष्ण अवग्रह याचन ५. साधारण भक्तपान अनुज्ञाप्य परिभोग ५. विनयप्रयोग ५. सार्मिक के पास से अवग्रह याचन ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावनाएं १. स्त्री, पशु और नपंसुक से संसक्त शयन १. असंसक्तवासवसति' १. स्त्रियों में कथा का वर्जन और आसन का वर्जन करना २. स्त्रीकथा का वर्जन करना २. स्त्रीजन में कथा वर्जन २. स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों के अवलोकन का वर्जन ३. स्त्रियों के इन्द्रियों के अवलोकन का वर्जन ३. स्त्रीजन के अंग-प्रत्यंग और ३. पूर्वभुक्त भोग की स्मृति का वर्जन करना चेष्टओं के अवलोकन का वर्जन ४. पूर्वभुक्त तथा पूर्वक्रीडित-काम भोगों ४. पूर्वभुक्त भोग की स्मृति ४. अतिमात्र और प्रणीत पान-भोजन की स्मृति का वर्जन करना का वर्जन का वर्जन ५. प्रणीत आहार का वर्जन करना ५. प्रणीतरसभोजन का वर्जन ५. स्त्री आदि से संसक्त शय्यासन का वर्जन १. प्रश्नव्याकरण, ६/१६-२१ । २. प्रश्नव्याकरण,७/१६-२१ । ३. प्रश्नव्याकरण, ८/८-१३ । ४. प्रश्नध्याकरण,९/५.११॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003591
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Samvao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size23 MB
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