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समवायो
समवाय २२ : सू० ११-१४ ११. जे देवा महितं विसुतं विमलं ये देवा महितं विश्रुतं विमलं प्रभासं ११. महित, विश्रुत, विमल, प्रभास,
पभासं वणमालं अच्चुतवडेंसगं वनमालं अच्युतावतंसकं विमानं बनमाल और अच्युतावतंसक विमानों विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि देवत्वेन उपपन्नाः, तेषां देवानांमुत्कर्षण में देवरूप में उत्पन्न होने वाले देवों णं देवाणं उक्कोसेणं बावीसं द्वाविंशति सागरोपमाणि स्थितिः की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता।
की है। १२. ते णं देवा बावीसाए अद्धमासाणं ते देवा द्वाविंशतेः अर्द्धमासानां आनन्ति १२. वे देव वाईस पक्षों से आन, प्राण,
आणमंति वा पाणमंति वा वा प्राणन्ति वा उच्छवसन्ति वा उच्छवास और नि:श्वास लेते हैं।
ऊससंति वा नीससंति वा। निःश्वसन्ति वा। १३. तेसि णं देवाणं बावीसाए तेषां देवानां द्वाविंशत्या वर्षसहस्रराहा- १३. उन देवों के वाईस हजार वर्षों से वाससहस्सेहि आहारट्ठे रार्थः समुत्पद्यते ।
भोजन की इच्छा उत्पन्न होती है। समुप्पज्जइ। १४. संतेगइया भवसिद्धिया जोवा, जे सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः, ये १४. कुछ भव-सिद्धिक जीव बाईस बार
बावोसाए भवग्गहहिं सिज्झि- द्वाविंशत्या भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति जन्म ग्रहण कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और संति बुन्झिस्संति मुच्चिस्संति भोत्स्यन्ते मोक्ष्यन्ति परिनिर्वास्यन्ति परिनिर्वृत होंगे तथा सर्व दुःखों का परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति ।
अन्त करेंगे। करिस्संति।
टिप्पण
१. निषोधिका (निसोहिया) :
आगमों तथा व्याख्या ग्रन्थों में 'निसीहिया' शब्द मिलता है और उसका संस्कृत रूप 'निशीथिका', 'निसीधिका' या 'नषेधिकी' किया जाता है। किन्तु इनकी अर्थ-संगति बड़ी अटपटी-सी लगती है । मूलतः यह पाठ 'निसीदिया होना चाहिए। प्राचीन लिपि में 'द' और 'ह' का प्रायः साम्य है । अत: लिपि-परिवर्तन के साथ 'निसीदिया' का 'निसीहिया' हो गया प्रतीत होता है। "निसीहिया' पाठ के आधार पर ही उसका संस्कृत रूप 'निषीधिका' किया गया है। यदि 'निसीदिया' पाठ सुरक्षित रहता हो तो उसका 'निषीधिका' रूप देने की आवश्यकता नहीं होती।
बाईस सौ वर्ष पहले उत्कीर्ण खारवेल के शिलालेखा में 'निसीदिया' शब्द मिलता है। इसका संस्कृत रूप 'निषीदिका' होता है। जैन साहित्य में 'मिसीहिया' शब्द भी प्राप्त होता है। दस सामाचारी में दूसरी समाचारी 'निसीहिया' है-'ठाणे कुज्जा निसीहियं' । इसका संस्कृत रूप 'निषीधिका' होता है । आवश्यक सूत्र के तीसरे अध्ययन के वन्दना सूत्र में 'निसीहिआ' शब्द का प्रयोग मिलता है । इसका भी संस्कृत रूप 'निषीधिका' होता है । इसका अर्थ व्यापारान्तर का निषेध करने वाली, पाप-क्रिया का निषेध करनी वाली-इस प्रकार निषेध परक होता है तथा 'निसीदिका' का अर्थ स्थान से संबंधित होता है। 'निसीदिया' और 'निसीहिया' दोनों का एकीकरण हो जाने पर आर्थिक जटिलता उत्पन्न हुई है।
२. बाईस परीषह (बावीसं परीसहा) :
परीषहों की विशद जानकारी के लिए देखें-उत्तरज्झयणाणि, भाग १, पृ० १६-२४ ।
१. प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, द्वितीय खंड, पृ० २७, २८:
खारवेल का हाथी गुम्फालेख-कायनिसीदियाय... ''अरहतनिसीदिया..." ।
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