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टिप्पण
१. सूर्य"तपते हैं (सूरिआ तवंति)
___ सूर्य अपने स्थान से सौ योजन ऊपर और अठारह सौ योजन नीचे तक प्रकाश फैलाते हैं । सूर्य से नीचे आठ सौ योजन पर समभूतल है । वहां से आगे भूमि का भाग निम्न होता जाता है और वह अपरविदेह में जगती के पास तक एक हजार योजन तक का है। वहां तक सूर्य का प्रकाश पहुंचता है। इस प्रकार निम्नवर्ती प्रकाश तिरछे लोक में आठ सौ योजन
और अधोलोक में हजार योजन तक जाता है। जम्बूद्वीप के सिवाय सभी द्वीप सम हैं। इसलिए सूर्य स्वस्थान से सौ योजन ऊपर तथा आठ सौ योजन नीचे तक प्रकाश फैलाते हैं। २. उन्नीस तीर्थङ्कर प्रवजित हुए थे (एगूणवीसं तित्थयरा 'पव्वइआ)
प्रस्तुत सूत्र में बतलाया गया है कि उन्नीस तीर्थङ्कर अगार में रहकर प्रवजित हुए। स्थानांग सूत्र में बतलाया गया है कि पांच तीर्थङ्कर कुमारवास में रहकर प्रवजित हुए। उनके नाम हैं—वासुपूज्य, मल्ली, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर।' स्थानांग के इस सूत्र से समवायांग के उन्नीस नामों का निश्चय अपने आप हो जाता है । स्थानांग में निर्दिष्ट पांच तीर्थङ्करों के अतिरिक्त शेष उन्नीस तीर्थङ्कर अगारवास में रहकर प्रव्रजित हुए। अगारवास और कुमारवास-इन दोनों शब्दों का एक साथ अध्ययन करने पर सहज ही मन पर यह छाप पड़ती है कि उन्नीस तीर्थङ्कर विवाहित होकर प्रवजित हुए और पांच तीर्थङ्कर अविवाहित अवस्था में प्रवजित हुए । आवश्यक नियुक्ति में इस विषय में परस्पर विसंवादी उल्लेख प्राप्त होते हैं। एक स्थान में 'कुमार' का अर्थ राजकुमार और दूसरे स्थान पर 'कुमार' का अर्थ ब्रह्मचारी फलित होता है। एक प्रसंग में बतलाया गया है कि महावीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्ली और वासुपूज्य–इनको छोड़कर शेष उन्नीस तीर्थङ्कर राजा थे। ये पांच तीर्थङ्कर राजकुल में उत्पन्न हुए किन्तु उनका राज्याभिषेक नही हुआ, वे कुमार अवस्था में ही प्रवजित हो गए। शान्ति, कुन्थु और अर--ये तीन तीर्थङ्कर चक्रवर्ती थे और शेष सोलह तीर्थकर मांडलिक राजा।'
दूसरे प्रसंग में बतलाया गया है कि 'ग्रामाचार' का अर्थ विषय होता है। कुमारवजित तीर्थङ्करों ने उनका सेवन किया था। पांच तीर्थङ्करों को प्रथम वय में प्रवजित और शेष तीर्थङ्करों को मध्यम वय में प्रवजित बतलाया गया है।
शीलांकसूरी के अनुसार तीस वर्ष तक प्रथम वय, साठ वर्ष तक द्वितीय वय और उससे आगे तृतीय वय होती है। भगवान् महावीर और पार्श्व तीस वर्ष की अवस्था में प्रव्रजित हुए थे। अरिष्टनेमि, मल्ली और वासुपूज्य भी अपने समय १. समवायांगवृत्ति, पत्न ३५। १. ठाणं, १/२३४ : पंच तित्थगरा कुमारवासमज्झे वसित्ता मुंडा भवित्ता अगाराभो मणगारियं पब्वइया, तं जहावासुपुज्जे मल्ली भरिट्ठणेमी पासे दौरे। ३. मावश्यक नियुक्ति, गा० २२१-२२३, प्रवचूर्णि प्रथम विभाग, पृ. २०१:
वीर मरिट्ठनेमि, पास मल्लि च वासुपुजं च । एए मत्तूण जिणे, भबसेसा प्रापि रायाणो॥ रायकुलेसुऽवि जाया, विसुद्धवंसेसु बत्तिमकुलेसु । न य इच्छिमाभिसेपा, कुमारवासंमि पव्वइया । संती कुथ म अरो, अरिहंता चेव चक्कवट्टी म ।
भवसेसा तित्थयरा मंडलिया भासि रायाणो॥ ४. पावश्यक नियुक्ति, गा• २३३, प्रवचूणि प्रथम विभाग, पृ० २०४
गामायारा बिसया, निसेविमा ते कुमारवज्जेहिं । ५. वही, गा० २२६, प्रवचूणि प्रथम विभाग, पृ० २०२ : वोरो अरिटुनेमी, पासो मल्ली च वासुपुज्जो प्र। पढमवए पव्वइमा, सेसा पुण पच्छिमवयमि॥ ६.भाचारांगवृत्ति, पत्न २४४ : प्रष्टवर्षादानिशत: प्रथमस्तत ऊर्ध्वमाषष्टे द्वितीयस्तत ऊध्वं तृतीय इति।
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