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टिप्पण
१. जीवों के समूह (भूअग्गामा)
भूत का अर्थ है-जीव और ग्राम का अर्थ है-समूह । भूतग्राम अर्थात् जीवो के समूह ।' जीव समूहों के ये चौदह प्रकार बहुत प्रचलित हैं और पचीस बोल आदि के थोकड़ों में इनका समावेश है।
कहीं-कहीं चौदह गुणस्थानों को भी इनके अन्तर्गत माना है। वहां इनका विभाग गुणों के आधार पर किया गया है।' २. पूर्व चौदह (चउद्दस पुव्वा)
दृष्टिवाद के पांच विभाग हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयोग, पूर्वगत और चूलिका ।
पूर्वगत के चौदह विभाग हैं। वे पूर्व कहलाते हैं। उनका परिणाम बहुत ही विशाल है। ये श्रुत या शब्दज्ञान के समस्त विषयों के अक्षय कोश होते हैं। इनकी रचना के बारे में दो विचारधाराएं हैं- पहली के अनुसार भगवान् महावीर के पूर्व ही ज्ञानराशि का यह भाग चला आ रहा था। इसलिए उत्तरवर्ती साहित्य रचना के समय इसे 'पूर्व' कहा गया।
दूसरी विचारधारा के अनुसार द्वादशांगी से पूर्व रचे गए, इसलिए इन्हें 'पूर्व' कहा गया।'
पूर्वो में सारा श्रुत समा जाता है। किन्तु साधारण बुद्धि वाले उसे पढ़ नहीं सकते। उनके लिए द्वादशांगी की रचना की गई ।' आगम-साहित्य में अध्ययन परम्परा के तीन अंग मिलते हैं। कुछ श्रमण चतुर्दशपूर्वी होते थे, कुछ द्वादशांगी के विद्वान् और कुछ सामायिक आदि ग्यारह अंगों के अध्येता। चतुर्दशपूर्वी श्रमणों का अधिक महत्त्व रहा है। उन्हें श्रुतकेवली कहा गया है। पूर्वो की भाषा संस्कृत मानी जाती है। इनका विषय गहन और भाषा सहज-सुबोध नहीं थी। इसलिए अल्पमति लोगों के लिए द्वादशांगी रची गई
'बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां, नृणां चारित्रकांङि क्षणाम् । अनुग्रहार्थं तत्त्वज्ञः, सिद्धान्तः प्राकृते कृतः ।।'
चौदह पूर्व
क्रम सं०
नाम
चूलिका वस्तु
दस
चौदह
चार बारह आठ
उत्पाद अग्रायणीय वीर्य-प्रवाद अस्तिनास्ति-प्रवाद ज्ञान-प्रवाद सत्य-प्रवाद आत्म-प्रवाद कर्म-प्रवाद प्रत्याख्यान प्रवाद विद्यानुप्रवाद अवन्ध्य (कल्याण) प्राणायुप्रवाद
विषय
पद-परिणाम वस्तु द्रव्य और पर्यायों की उत्पत्ति
एक करोड द्रव्य, पदार्थ और जीवों का परिमाण छियानवें लाख सकर्म और अकर्म जीवों के वीर्य का वर्णन सत्तरलाख
आठ पदार्थ की सत्ता और असत्ता का निरूपण साठ लाख
अठारह ज्ञान का स्वरूप और प्रकार
एक कम एक करोड़ बारह सत्य का निरूपण
एक करोड़ छह आत्मा और जीव का निरूपण
छब्बीस करोड़ कर्म का स्वरूप और प्रकार
एक करोड़ अस्सी लाख तीस व्रत-आचार, विधि-निषेध
चौरासी लाख सिद्धियों और उनके साधनों का निरूपण एक करोड़ दस लाख शुभाशुभ फल की अवश्यंभाविता का निरूपण छब्बीस करोड़ इन्द्रिय, श्वासोश्वास, आयुष्य
एक करोड़ छप्पन लाख तेरह और प्राण का निरूपण शुभाशुभ क्रियाओं का निरूपण
नौ करोड़
तीन लब्धि का स्वरूप और विस्तार
साढे बारह करोड़ पच्चीस
सोलह
बीस
बारह
क्रियाविशाल लोकबिन्दुसार
१. समवायांगवृत्ति, पत्र २६ :
भूतानि-जीवाः, तेषां ग्रामाः-समूहाः भूतग्रामा: । २. आवश्यक, हारिभद्रीयावृत्ति, भाग २, पृष्ठ १०७ :
...."एवं चतुर्दशप्रकारो भूतग्रामः प्रदर्शितः, मधुनाऽमुमेव गुणस्थानद्वारेण दर्शयन्नाह संग्रहणिकार:-- 'मिच्छदिट्ठि सासायणे य तह......... ॥१॥
.........मजोगी अजोगी य ॥२॥ ३. स्थानांग १०/६२, वृत्ति पन्न ४६६ :
सर्वश्रुतात् पूर्व क्रियते इति पूर्वाणि । ४. पावश्यकनियुक्ति :
जइविय भूयावाए सब्बस्स बयोगयस्स मायारो। निज्जूहणा तहा विहु, दुम्मेहे पप्प इत्थी य ॥
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