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अट्ठम सतं (पंच मो उद्देसो)
३५१ पंचमो उद्देसो आजीवियसंदब्भे समणोवासय-पदं २३०. रायगिहे जाव' एवं वयासी-प्राजोविया णं भंते ! थेरे भगवंते एवं वयासी
समणोवासगरसणं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, से णं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणे किं सभंडं' अणुगवेसइ ? परायगं भंडं अणुगवेसइ ?
गोयमा ! सभंडं अणुगवेसइ, नो परायगं भंडं अणुगवेसइ । २३१. तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं से
भंडे अभंडे भवई ?
हंता भवई॥ २३२. से केणं खाइ णं अद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-सभंडं अणुगवेसइ, नो परायगं
भंडं अणुगवेसइ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-नो मे हिरण्णे, नो मे सुवण्णे, नो मे कसे, नो मे दूसे, नो मे विपुलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणमादीए संतसारसावदेज्जे', ममत्तभावे पुण से अपरिणाए भवइ । से तेणद्वेणं
गोयमा ! एवं वुच्चइ-सभंडं अणुगवेसइ, नो परायगं भंडं अणुगवेसइ ॥ २३३. समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ
जायं चरेज्जा, से णं भंते ! किं जायं चरइ ? अजायं चरइ ?
गोयमा ! जायं चरइ ? नो अजायं चरइ ।। २३४. तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि सा
जाया अजाया भवइ ?
हंता भवइ ।। २३५. से केणं खाइ णं अट्ठणं भंते एवं वुच्चइ-जायं चरइ ? नो अजायं चरइ ?
गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिणी, नो मे भज्जा, नो मे पत्ता, नो मे धया. नो मे सण्डाः पेज्जबंधणे पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेण?णं गोयमा ! •एवं वुच्चइ- जायं
चरइ°, नो अजायं चरइ।। १. भ० १।४-८ ।
४. हवइ (ता)। २. एवं वक्ष्यमाणप्रकारमवादिषुः, यच्च ते तान् ५. सापदेज्जे (ता); सावतेज्जे (ब)।
प्रत्यवादिषुस्तद्गौतमः स्वयमेव पृच्छन्नाह ६. ममत्ति° (क, ता, ब)। (वृ)।
७. केवइ (ता)। ३. सयभंडं (अ); सं भंड (ता, म); सयं भंडं ८. अवो० (अ)।
६. सं० पा०-गोयमा जाव नो।
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