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________________ 44] अनुयोगद्वारसूत्र यद्यपि सचित्तद्रव्यस्कन्ध की सिद्धि हयस्कन्ध आदि में से किसी एक उदाहरण से हो सकती थी तथापि प्रात्मावतवाद का निराकरण करने एवं जीवों के भिन्न-भिन्न स्वरूप तथा उनकी अनेकता बताने के लिये उदाहरण रूप में हय ग्रादि पृथक-पृथक जीवों के नाम दिये हैं / अद्वैतवाद को स्वीकार करने पर भेदव्यवहार नहीं बनता है। अचित्तद्रव्यस्कन्ध 63. से कि तं अचित्तदत्वखंधे ? अचित्तदव्वखंधे अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहा--दुपएसिए खंधे तिपएसिए खंधे जाव दसपएसिए खंधे संखेज्जपएसिए खंधे असंखेज्जपएसिए खंधे अणंतपएसिए खंधे / से तं अचित्तदव्वखंधे। [63 प्र.| भगवन् ! अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप क्या है ? [63 उ. आयुष्मन् ! अचित्तद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का प्ररूपित किया है। वह इस तरह-द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दसप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध / यह अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है। विवेचन-यहाँ सूत्रकार ने अचित्तद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप बताया है / दो प्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जो और जितने भी पुद्गलस्कन्ध हैं वे सब अचित्तद्रव्यस्कन्ध हैं। प्रकृष्टः (पुदगलास्तिकाय-} देश: प्रदेश:, इस व्युत्पत्ति के अनुसार सबसे अल्प परिमाण बाले पुद्गलास्तिकाय का नाम प्रदेश-परमाण है / दो आदि अनेक परमाणुओं के मेल से बनने वाले स्कन्धों का मूल परमाणु है। परमाणु में अस्तिकायता इसलिये है कि वह स्कन्धों का उत्पादक है। मिश्रद्रव्यस्कन्ध 64. से किं तं मीसदध्वखंधे ? मीसदव्वखंधे अणेगविहे पण्णते। तं जहा-सेणाए अग्गिमखंधे सेणाए मज्झिमखंधे सेणाए पच्छिमखंधे / से तं मीसदव्वखंधे। [64 प्र.] भगवन् ! मिश्रद्रव्यस्कन्ध का क्या स्वरूप है ? [64 उ.] आयुष्मन् ! मिश्रद्रव्यस्कन्ध अनेक प्रकार का कहा है / यथा-सेना का अग्रिम स्कन्ध, सेना का मध्य स्कन्ध, सेना का अंतिम स्कन्ध / यह मिश्रद्रव्यस्कन्ध का स्वरूप है / विवेचन--सूत्रकार ने मिश्रद्रव्यस्कन्ध के उदाहरण के रूप में सेना का उल्लेख किया है। इसका कारण यह है कि सेना सचेतन और अचेतन इन दोनों का मिथण (संयोग) रूप अवस्था है। हाथी, घोड़े, मनुष्य आदि सचेतन तथा तलवार, धनुष, कवच, भाला आदि अचेतन वस्तुग्रों के समुदाय का नाम सेना है / इसीलिये इसे मिश्रद्रव्यस्कन्ध कहा है। ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यस्कन्ध का प्रकारान्तर से प्ररूपण 65. अहवा जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दम्वखंधे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा- कसिणखंधे 1 अकसिणखंधे 2 अगदवियखंधे 3 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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