________________ मावश्यक निरूपण [21 विवेचन-सूत्र में नोग्रागमद्रव्यावश्यक के दूसरे भेद भव्यशरीरद्रव्यावश्यक का स्वरूप बतलाया है। वर्तमान की अपेक्षा इस शरीर में आगम के प्रभाव को लेकर नोग्रागमता जानना चाहिये। यद्यपि इस समय के शरीर में पागम का अभाव है, लेकिन 'भाविनि भूतवदुपचार:-भावी में भी भूत की तरह उपचार होता है-के न्यायानुसार भविष्यकालीन स्थिति को ध्यान में रखकर उपचार से उसमें द्रव्यावश्यकता मानी है। क्योंकि वर्तमान में न सही किन्तु यही शरीर आगे चलकर इसी पर्याय में आवश्यकशास्त्र का ज्ञाता बनेगा। यही बात दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट की गई है कि भविष्य में मधु या घृत जिनमें भरा जागा उन घड़ों को वर्तमान में मधुघट या घृतघट कहा जाता है। इन दोनों दृष्टान्तों में संकल्पमात्रग्राही नैगमनय की अपेक्षा है / ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक 19. से कि तं जाणगसरीरवियसरीरवतिरित्ते दवावस्सए ? जाणगसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दम्यावस्सए तिविधे पण्णत्ते / तं जहा--लोइए 1 कुप्पावणिते 2 लोउत्तरिते 3 // [19 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है ? [19 उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक तीन प्रकार का है। यथा-१ लौकिक, 2 कुप्रावनिक, 3 लोकोतरिक / विवेचन-सूत्र में उभयव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक के तीन भेदों के नाम गिनाये हैं / यथाक्रम उनका वर्णन करते हैं। लौकिक द्रव्यावश्यक 20. से कि तं लोइयं दवावस्सयं? लोइयं दवावस्मयं जे इमे राईसर-तलवर-माउंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्टि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभितिओ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिल्लियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगासकिसुयसुयमुहगुजरागसरिसे कमलागर-नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते मुधोयण-दंतपक्खालण-तेल्ल-फगिह-सिद्धत्थय-हरियालियअदाग-धव-पुष्फ-मल्ल-गंध-तंबोल-वत्थमाइयाई दवावस्सयाई करेत्ता ततो पच्छा रायकुलं बा देवकुलं वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं वा पवं वा गच्छति / से तं लोइयं दवावस्सयं। [20 प्र.] भगवन् ! लौकिक द्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है ? [20 उ.] आयुष्मन् ! जो ये राजेश्वर अथवा राजा, ईश्वर, तलवर, माङविक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, मार्थवाह आदि रात्रि के व्यतीत होने से प्रभातकालीन किंचिन्मात्र प्रकाश होने पर, पहले की अपेक्षा अधिक स्फुट प्रकाश होने, विकसित कमलपत्रों एवं मृगों के नयनों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org