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________________ आवश्यक निरूपण] [13 [10 प्र.] भगवन् ! नाम-आवश्यक का स्वरूप क्या है ? [10 उ.] आयुष्मन् ! जिस किसी जीव या अजीव का अथवा जीवों या अजीवों का, तदुभय (जीव और अजीव) का अथवा तदुभयों (जीवों और अजीवों) का (लोकव्यवहार चलाने के लिये) 'आवश्यक' ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नाम-यावश्यक कहते हैं। 11. से कि तं ठवणावस्सयं ? जण्णं कटुकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संधाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अणेगा वा सम्भावठवणाए वा असम्भावठवणाए वा आवस्सए त्ति ठवणा ठविज्जति / से तं ठवणावस्सयं / [11 प्र.] भगवन् ! स्थापना-आवश्यक का क्या स्वरूप है ? [11 उ.] आयुष्मन् ! स्थापना-आवश्यक का स्वरूप इस प्रकार है-काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पुस्तकर्म, लेप्यकर्म, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम, अक्ष अथवा वराटक में एक अथवा अनेक प्रावश्यक रूप से जी सदभाव अथवा असदभाव रूप स्थापना की जाती है, वह स्थापना-अावश्यक है। यह स्थापना-यावश्यक का स्वरूप है। 12. नाम-ट्टवणाणं को पइविसेसो ? णामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। [12 प्र.] भगवन् ! नाम और स्थापना में क्या भिन्नता-अंतर है ? [12 उ.] आयुष्मन् ! नाम यावत्कथिक होता है, किन्तु स्थापना इत्वरिक और यावत्कर्थिक, दोनों प्रकार की होती है। विवेचन-इन तीन सूत्रों में नाम और स्थापना आवश्यक का स्वरूप एवं दोनों की विशेषता-- भिन्नता का निर्देश किया है। नाम-आवश्यक-नाम, अभिधान या संज्ञा को कहते हैं। अतएव तदात्मक आवश्यक नामआवश्यक कहलाता है / नाम-प्रावश्यक में नाम ही आवश्यक रूप होता है- अथवा नाम मात्र से ही जो आवश्यक कहलाये वह नाम-पावश्यक है। नाम का क्षेत्र इतना व्यापक है कि लोकव्यवहार चलाने के लिये जीव, अजीव, जीवों, अजीवों अथवा जीवाजीव से मिश्रित पदार्थ अथवा पदार्थों के लिये उपयोग होता है। इसको उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करते हैं / जीव का प्रावश्यक यह नामकरण किये जाने में व्यक्ति की इच्छा मुख्य है। जैसे किसी व्यक्ति ने अपने पुत्र का नाम देवदत्त रखा। लेकिन उसे देव ने दिया नहीं है, फिर भी लोकव्यवहार के लिये ऐसा कहा जाता है। यही दष्टि नाम-आवश्यक के लिये भी समझना चाहिये कि भावआवश्यक से शून्य किसी जीव, अजीव का व्यवहारार्थ आवश्यक नामकरण कर दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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