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________________ 10] [अनुयोगबारसूत्रः भावरहित-निष्कपट हो। 10. स्थिरपरिपाटी–अभ्यास द्वारा अनुयोग करने का स्थिर अभ्यासी अथवा गुरुपरम्परा से प्राप्त ज्ञान का धनी हो / 11. ग्रहीतवाक्य-पादेय वचन बोलने वाला हो। 12. जितपरिषद्-सभा को प्रभावित करने वाला एवं क्षुभित न होने वाला हो। 13. जितनिद्र- शास्त्रीय अध्ययन-चिन्तन-मनन करते हुए निद्रा का वशवर्ती नहीं होने वाला। 14. मध्यस्थ-पक्षपात रहित-- निष्पक्ष हो। 15 देश, काल, भाव का ज्ञाता हो। 16. आसन्नलब्धप्रतिभ-प्रतिवादी को परास्त करने की प्रतिभा से सम्पन्न हो। 17. नानाविधदेशभाषाविज्ञ-अनेक देशों की भाषाओं का ज्ञाता हो / 18. पंचविध प्राचारयुक्त-ज्ञानाचार आदि पांच प्रकार के प्राचारों का पालक हो। 19 सूत्रार्थतदुभय-विधिज्ञ-सूत्र, अर्थ एवं उभय (सूत्रार्थ) की विधि का जानकार हो। 20. आहरण-हेतु-उपनयनय-निपुण-उदाहरण, हेतु, उपनय और नय दृष्टि का मर्मज्ञ हो / 21. ग्राहणाकुशल-शिष्य को तत्त्व ग्रहण कराने में कुशल हो। 22. स्वसमय-परसमयवित्-स्व और पर सिद्धान्त में निष्णात हो / 23. गम्भीर-उदार स्वभाव वाला हो / 24. दीप्तिमान्-परवादियों द्वारा परास्त न किया जा सके / 25. शिव-जनकल्याण करने की भावना से भावित हो / 26. सौम्य-शान्त स्वभाव वाला हो / 27. गुणशतकलित-दया, दाक्षिण्य आदि सैकड़ों गुणों से युक्त हो। इस प्रकार के गुणों से युक्त व्यक्ति प्रवचन का अनुयोग करने में समर्थ होता है या अनुयोग करने का अधिकारी है।' इस प्रकार अनुयोग सम्बन्धी वक्तव्यता जानना चाहिये / प्रावश्यक पद के निक्षेप की प्रतिज्ञा 6. जइ आवस्सयस्स अणुओगो आवस्सयण्णं किमंग अंगाई ? सुयक्खंधो सुयक्संधा? अजायणं अज्झयणाई ? उद्देसगो उद्देसगा? ___ आवस्सयण्णं णो अंगं णो अंगाई, सुयक्खंधो पो सुयक्खंधा, णो अज्सयणं, अज्मयणाई, जो उद्देसगो, गो उद्देसगा। [6 प्र.] भगवन् ! यदि यह अनुयोग आवश्यक का है तो क्या वह (आवश्यकसूत्र) एक अंग रूप है या अनेक अंग रूप है ? एक श्रुतस्कन्ध रूप है या अनेक श्रुतस्कन्ध रूप है ? एक अध्ययन रूप है या अनेक अध्ययन रूप है ? एक उद्देशक रूप है या अनेक उद्देशक रूप हैं ? [6 उ.] आयुष्मन् ! आवश्यकसूत्र (अंगप्रविष्ट द्वादशांग से बाह्य होने से) एक अंग नहीं है और अनेक अंग रूप भो नहीं है। वह एक श्रुतस्कन्ध रूप है, अनेक श्रुतस्कन्ध रूप नहीं है, (छह अध्ययन होने से) अनेक अध्ययन रूप है, एक अध्ययन रूप नहीं है, एक या अनेक उद्देशक रूप नहीं है, (अर्थात् आवश्यकसूत्र में उद्देशक नहीं हैं / ) विवेचन--यहाँ आवश्यकसूत्र के परिचय संबन्धी एक और बहुवचन की अपेक्षा आठ प्रश्न हैं और उनके उत्तर दिये हैं कि यह छह अध्ययनात्मक श्रुतस्कन्ध रूप होने से अनेक अध्ययन और एक श्रुतस्कन्ध रूप है / शेष छह प्रश्न अग्राह्य होने से अनादेय हैं। 1. अनुयोग-वृत्ति प, 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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