________________ 476 [अनुयोगद्वारसूत्र ही उस स्थान पर एक विशाल तालाव बनवाया और उसके किनारे षड् ऋतुओं के फल-फूलों वाले वृक्ष लगवा दिये। - इसके बाद किसी समय पुनः राजा अमात्य सहित उसी रारते पर घूमने निकला / वृक्ष-समूह से सुशोभित जलाशय को देखकर राजा ने अमात्य से पूछा-यह रमणीक जलाशय किसने बनवाया है ? अमात्य ने उत्तर दिया-महाराज ! अापने ही तो बनवाया है / अमात्य का उत्तर सुनकर राजा को ग्राश्चर्य हुआ। वह बोला--सचमुच ही यह जलाशय मैंने बनवाया है ? जलाशय बनवाने का कोई प्रादेश मैंने दिया हो, याद नहीं है। अमात्य ने पूर्व समय की घटना की याद दिलाते हुए बताया—महाराज! इस स्थान पर बहुत समय तक मूत्र को विना सूखा देख कर आपने यहाँ जलाशय बनवाने का विचार किया था। आपके मनोभावों को जानकर मैंने यह जलाशय बनवा दिया है। अपने अमात्य की दुसरे के मनोभावों को परखने की प्रतिभा देख कर राजा बहुत प्रसन्न हया और उसकी प्रशंसा करने लगा। (यह तीनों अप्रशस्त भावोपक्रम के दृष्टान्त हैं / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org