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________________ परिशिष्ट १-कथानक] [475 साथ क्यों किया? फिर मार-पीट कर उसे घर से बाहर निकाल दिया / तब वह रोती-कलपती मां के पास आई और सब घटना कह सुनाई। पुत्री की बात से ब्राह्मणी को उसके पति के स्वभाव का पता लग गया और उसी समय वह उसके पास आई / मीठे-मीठे बोलों से जमाई के क्रोध को शांत करके बोली -- जमाईराज ! हमारे कुल की यह रीति है कि सुहाग रात में प्रथम समागम के समय पति के मस्तक पर चरण-प्रहार किया जाता है, इसी कारण मेरी पुत्री ने आपके साथ ऐसा व्यवहार किया है, किन्तु दुर्भावना या दुष्टता से यह सब नहीं किया है। इसलिये आप शान्त हों और इस वर्ताव के लिये उसे क्षमा करें। सासू की बात से उसका गुस्सा शांत हुआ / उसके बाद डोडिणी ब्राह्मणी ने तीसरी पुत्री को सलाह दी-बेटो! तेरा पति दुराराध्य है, इसलिये उसकी आज्ञा का बराबर पालन करना और सावधानीपूर्वक देवता की तरह उसकी सेवा करना। इस प्रकार पूर्वोक्त युक्ति से ब्राह्मणी ने अपने जमाइयों के स्वभावों को जान लिया। 2. विलासवती गणिका की कथा किसी नगर में एक गणिका रहती थी, जिसका नाम विलासवती था। वह चौंसठ कलाओं में निपुण थी। उसने अपने यहाँ आने वालों का अभिप्राय जानने के लिये अपने रतिभवन में दीवारों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियायें करते विविध जाति के पुरुषों के चित्र लगवाये थे। जो पुरुष वहाँ प्राता वह उसे अपने जात्युचित चित्र के निरीक्षण में तन्मय देखकर उसकी रुचि, जाति, स्वभाव आदि को समझ जाती थी और उसी के अनुरूप उस पुरुष के साथ वर्ताव कर उसका आदर-सत्कार करके प्रसन्न कर देती थी / परिणामस्वरूप उसके यहाँ पाने वाले व्यक्ति प्रसन्न होकर इनाम में खूब द्रव्य देते थे। 3. सुशील अमात्य को कथा किसी नगर में भद्रबाहु नाम का राजा राज्य करता था। उसके अमात्य का नाम सुशील था / वह परकीय मनोगत भावों को जानने में निपुण था। एक दिन अश्वक्रीडा करने के लिये अमात्य सहित राजा नगर के बाहर गया। चलते-चलते रास्ते के किनारे बंजर भूमि में घोड़े ने लघुशंका (पेशाब) कर दी। वह मूत्र वहाँ जैसा का तैसा भरा रहा, सूखा नहीं। अश्वक्रीड़ा करने के बाद राजा पुनः उसी रास्ते से वापस लौटा / तब भी मूत्र को पहले जैसा भरा देख कर राजा के मन में विचार आया यदि यहाँ तालाब बनवाया जाय तो वह हमेशा जल से भरा रहेगा। इस प्रकार का विचार करता-करता राजा बहुत देर तक उस भूमि-भाग की ओर ताकता रहा और उसके बाद अपने महल में लौट आया / चतुर अमात्य राजा के मनोगत भावों को बराबर समझ रहा था / उसने राजा से पूछे विना 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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