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________________ [अनुयोगद्वारसूत्र 3. निरर्थकवचन-जिन अक्षरों का अनुक्रमपूर्वक उच्चारण तो मालम हो, लेकिन अर्थ कुछ भी सिद्ध नहीं हो। जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ इत्यादि अथवा उिन्थ उवित्थ आदि / 4. अपार्थकदोष असंबद्ध अर्थवाचक शब्दों का बोलना / जैसे-दस दाडिम, छह अपूप, कुण्ड में बकरा आदि। 5. छलदोष -ऐसे पद का प्रयोग करना जिसका अनिष्ट अर्थ हो सके और विवक्षितार्य का उपघात हो जाये / जैसे 'नवक्रम्बलोऽयं देवदत्त इति' / यहाँ 'नव' शब्द का प्रर्थ तन है, किन्तु 'नौ' अर्थ भी हो सकता है। 6. द्रहिलदोष-पाप व्यापारपोषक / 7. निस्सारवचनदोष-युक्ति से रहित वचन / 8. अधिकदोष-जिसमें अक्षर-पदादि अधिक हों। जैसे अनित्यः शब्दः कृतकत्वप्रयत्नानन्तरीयकत्वाभ्यां घटपटवत् / यहाँ एक साध्य की सिद्धि के लिये कृतकत्व और प्रयत्नानन्तरीयकत्व यह दो हेतु और घट पट दो दृष्टान्त दिये गये हैं। एक साध्य की सिद्धि में एक ही हेतु और एक ही दृष्टान्त पर्याप्त है / इसलिये अधिक दोष है। 9. ऊनदोष-(न्यूनवचन)--जिसमें अक्षरसदादि होत हों अथवा हेतु या दृष्टान्त की न्यूनता हो / जैसे-अनित्यः शब्द: घटवत् तथा अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् / 10. पुनरुक्तदोष --- पुनरुक्तदोष के दो भेद हैं--एक शब्द से और द्वितीय अर्थ से / शब्द -जो शब्द एक बार उच्चारण किया गया हो, किर उपी का उच्चारण करना, जैसे-घटो घट: / अर्थ से पुनरुक्त जैसे--घट, कुट, कुंभ / 11. व्याह्तदोष-जहाँ पूर्ववचन से उत्तरवचन का ज्याधात हो। जैसे 'कर्म चास्ति फलं चास्ति कर्ता नत्वस्ति कर्मणामित्यादि-कर्म है और उसका फल भी होता है किन्तु कर्मों का कर्ता कोई नहीं है।' 12. प्रयुक्त दोष-जो वचन युक्ति, उपपत्ति को सहन न कर सके। जसे हाथियों के गण्डस्थल से मद का ऐसा प्रवाह बहा कि उसमें चतुरंगी सेना बह गई। 13. कमभिन्नदोष----जिसमें अनुक्रम न हो, जो उलट-पुलट कर बोला जाये, जैसे—स्पर्श, रस, गंध, रूप, शब्द के स्थान पर स्पर्श, रूप, शब्द, रस, गंध इस प्रकार क्रमभंग करके बोलना / 14. वचनभिन्नदोष जहाँ वचन की विपरीतता हो / जैसे वृक्षाः ऋतौ पुष्पितः / यहाँ 'वृक्षाः' बहुवचन का पद है और 'पुष्पितः एकवचन है / 15. विभक्तिभिन्नदोष --विभक्ति को विपरीतता-व्यत्यय होना / जैसे 'वक्षं पश्य' के स्थान पर 'वृक्षः पश्य' ऐसा कहना / यहाँ द्वितीया विभक्ति के स्थान पर प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया गया है। 16. लिंगभिन्नदोष-लिंग का विपरीत होना / जैसे-- अयं स्त्री / इसमें 'अय' शब्द पुल्लिग है और 'स्त्री' शब्द स्त्रीलिंग का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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