________________ सामायिक निरूपण] [457 प्रकारान्तर से श्रमण का निर्वचन 569. [ई] तो समणो जइ सुमणो, भावेण य जइ ण होइ पावमणो / सयणे य जणे य समो, समो य माणाऽवमाणेसु // 132 // से तं नोआगमतो भावसामाइए / से तं भावसामाइए / से तं सामाइए / सेतं नामनिष्फण्णे / [599 (ई)। (पूर्वोक्त उपमानों से उपमित) श्रमग तभी संभवित है जब वह सुमन हो, और भाव से भी पापी मन वाला न हो। जो माता-पिता आदि स्वजनों में एवं परजनों एव मान-अपमान में समभाव का धारक हो। इस प्रकार से नोप्रागमभावसामायिक, भावसामायिक, सामायिक तथा नामनिष्पन्ननिक्षेप की वक्तव्यता का प्राशय जानन विवेचन---गाथा में प्रकारान्तर से श्रमण का लक्षण बताने के साथ उसकी योग्यता का तथा अंत में नामनिष्पन्ननिक्षेप की वक्तव्यता की समाप्ति का कथन किया है / इन सब विशेषताओं से विभूषित श्रमण समन, सममन, सुमन ही सामायिक है / समन और सामायिक में नोमागमता इसलिये है कि सामायिक ज्ञान के साथ क्रिया रूप है और क्रिया प्रागम रूप नहीं है। तथा सामायिक और सामायिक वाले इन दोनों में अभेदोपचार करने से समन भी नोपागम की अपेक्षा भावसामायिक है / सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप 600. से कि तं सुत्तालावनिष्फण्णे ? सुत्तालावगनिष्फण्णे इदाणि सुत्तालावनिष्फण्णं निक्लेवं इच्छावेइ, से व पत्तलक्खणे विण णिविखप्पड़, कम्हा ? लाघवत्थं / इतो अस्थि ततिये अणुओगद्दारे अणुगमे ति, तहि णं मिक्खित्ते इह णिक्खित्ते भवति इहं वा णिक्खित्ते तहि मिक्खित्ते भवति, तम्हा इहंण णिविखप्पड तहिं चेव णिक्खिप्पिस्सइ / से तं निक्लेवे / [600 प्र] भगवन् ! सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेप का क्या स्वरूप है ? (600 उ.] श्रायुष्मन् ! इस समय (नामनिष्पत्रनिक्षेप का कथन करने के अनन्तर) सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप की प्ररूपणा करने की इच्छा है और अवसर भी प्राप्त है / किन्तु आगे अनुगम नामक तीसरे अनुयोगद्वार में इसी का वर्णन किये जाने से लाघव की दृष्टि से अभी निक्षेप नहीं करते हैं। क्योंकि वहां पर निक्षेप करने से यहां निक्षेप हो गया और यहां निक्षेप किये जाने से वहाँ पर निक्षेप हुआ समझ लेना चाहिये / इसीलिये यहाँ निक्षेप नहीं करके बहाँ पर ही इसका निक्षेप किया जायेगा। इस प्रकार से निक्षेपप्ररूपणा का वर्णन समाप्त हुआ। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में सूत्रालापकों का नाम आदि निक्षेपों में न्यास न करने का कारण स्पाट किया है / सूत्रों का उच्चारण अनुगम के भेद सूत्रानुगम में किया जाता है और उच्चारण किये बिना आलापकों का निक्षेप होता नहीं है। किन्तु वह भी निक्षेप का एक प्रकार है। यह बताने के लिये यहाँ उसका उल्लेख मात्र किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org