________________ आय निरूपण [569 उ.] आयुष्मन् ! अलंकारादि से तथा वाद्यों से विभूषित दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र प्राय कहते हैं / इस प्रकार से लौकिक-आय का स्वरूप जानना चाहिये। 570. से कि तं कुप्पावणिये ? कुप्पावणिये तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--सचित्ते अचित्त मीसए य / तिणि वि जहा लोइए, जाव से तं कुप्पावयणिए / [570 प्र.] भगवन् ! कुप्रवाचनिक-प्राय का क्या स्वरूप है ? [570 उ. आयुष्मन् ! कुप्रवाचनिक आय भी तीन प्रकार की है। यथा--१. सचित्त, 2. अचित्त, 3. मिश्र / इन तीनों का वर्णन लौकिक-पाय के तीनों भेदों के अनुरूप जानना चाहिये यावत् यही कुप्रवाचनिक प्राय है / / 571. से कि तं लोगुत्तरिए ? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-सचित्ते अचित्ते मोसए य / 6571 प्र.] भगवन ! लोकोत्तरिक-प्राय का क्या स्वरूप है ? [571 उ.. आयुस्मन् ! लोकोत्तरिक-प्राय के तीन प्रकार कहे गये हैं / यथा--१. सचित्त, 2. अचित्त और 3. मिश्र / 572. से कि तं सचित्ते ? सचित्ते सीसाणं सिस्सिणियाणं आये / से तं सचित्ते / [572 प्र. भगवन् ! सचित्त-लोकोत्तरिक-प्राय का क्या स्वरूप है ? [572 उ. श्रायुप्मन् ! शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति सचित्त-लोकोतरिक-प्राय है। 573. से कितं अचित्ते ? अचित्ते पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुछणाणं आए / से तं अचित्ते / [573 प्र. भगवन् ! अचित्त लोकोत्तरिक-प्राय का क्या स्वरूप है ? [573 उ.] आयुष्मन् ! अचित्त पात्र, वस्त्र, पादपोंच्छन (रजोहरण) आदि की प्राप्ति को अचित्त लोकोत्तरिक-पाय कहते हैं। 574. से कितं मीसए ? मोसए सोसाणं सिस्सिणियाणं सभंडोवकरणाणं आये। से तं मीसए / से तं लोगुत्तरिए, से तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दवाए / से तं नोआगमओ दवाए / से तं दवाए। {574 प्र.] भगवन् ! मिश्र लोकोत्तरिक-प्राय किसे कहते हैं ? [574 उ.] आयुष्मन् ! भांडोपकरणादि सहित शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति-लाभ को मिश्र आय कहते हैं / यही लोकोतरिक-प्राय का स्वरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org