________________ 422) अनुयोगद्वारसूत्र 518. उक्कोसयं जुत्ताणतयं केत्तियं होति ? जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गुणिता अण्णमण्णभासो रूवणो उक्कोसयं जुत्ताणंतपं होइ, अहवा जहण्णय अणंताणतयं रूवूणं उक्कोसयं जुत्ताणतयं होइ। [518 प्र.] भगवन् ! उत्कुष्ट युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? [518 उ.] आयुष्मन् ! जघन्य युक्तानन्त राशि के साथ अभवसिद्धिक राशि का परस्पर अभ्यास रूप गुणाकार करके प्राप्त संख्या में से एक रूप को न्यून करने पर प्राप्त राशि उत्कृष्ट युक्तानन्त की संख्या है / अथवा एक रूप न्यून जघन्य अनन्तानन्त उत्कृष्ट युक्तानन्त है। _ विवेचन--यहाँ युक्तानन्त के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेदों का स्वरूप बताया है। सूत्रार्थ सुगम है। शास्त्रों में जहाँ भी अभव्य जीव राशि की अनन्तता का उल्लेख है, उसका निश्चित प्रमाण जघन्य युक्तानन्तराशि जितना समझना चाहिये। अनन्तानन्तनिरूपण 519. जहण्णयं अणंताणतयं केत्तियं होति ? जहण्णएणं जुत्ताणतएणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो जहण्णयं अणताणतयं होइ, अहवा उक्कोसए जुत्ताणतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं प्रणताणतयं होति, तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई / से तं गणणासंखा / [519 प्र.] भगवन् ! जघन्य अनन्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? [519 उ.] आयुष्मन् ! जघन्य युक्तानन्त के साथ अभवसिद्धिक जीवों (जघन्य युक्तानन्त) को परस्पर अभ्यास रूप से गुणित करने पर प्राप्त पूर्ण संख्या जघन्य अनन्तानन्त का प्रमाण है। अथवा उत्कृष्ट युक्तानन्त में एक रूप का प्रक्षेप करने से जघन्य अनन्तानन्त होता है / तत्पश्चात् (जघन्य अनन्तानन्त के बाद) सभी स्थान अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम) अनन्तानन्त के होते हैं। (क्योंकि उत्कृष्ट अनन्तानन्त राशि नहीं होती है)। इस प्रकार गणनासंख्या का निरूपण पूर्ण हुग्रा / विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में अनन्तानन्त संख्या के जघन्य और मध्यम इन दो भेदों का प्रमाण बतलाया है, किन्तु उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्या संभव नहीं होने से उसका निरूपण नहीं किया गया है। उक्त कथन सैद्धान्तिक प्राचार्यों का है, लेकिन अन्य प्राचार्यों ने उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्या का भी निरूपण किया है। उनका मत है जघन्य अनन्तानन्त का तीन बार वर्ग करके फिर उसमें निम्नलिखित छह अनन्तों का प्रक्षेप करना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org