________________ 410] [अनुयोगटारसूत्र [498 उ.] अायुष्मन् ! संख्यात तीन प्रकार का षतिपादन किया गया है। वह इस प्रकार१. जघन्य संख्यात, 2. उत्कृष्ट संख्यात और 3. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) संख्यात / 499. से कि तं असंखेन्जए ? असंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--परित्तासंखेज्जए जुत्तासंखेज्जए असंखेज्जासंखेज्जए। [499 प्र.] भगवन् ! असंख्यात का क्या स्वरूप है ? [499 उ.] आयुष्मन् ! असंख्यात के तीन प्रकार हैं। जैसे--१. परीतासंख्यात, 2. युक्तासंख्यात और 3 असंख्यातासंख्यात / 500. से कितं परित्तासंखेज्जए ? परित्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते / तं०-जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए / {500 प्र.] भगवन् ! परीतासंख्यात का क्या स्वरूप है ? [500 उ.] आयुष्मन् ! परीतासंख्यात तीन प्रकार का कहा है-१. जघन्य परीतासंख्यात, 2. उत्कृष्ट परीतासंख्यात और 3. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) परीतासंख्यात / 501. से कि तं जुत्तासंखेज्जए ? जुत्तासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते / सं०-जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए / [501 प्र.] भगवन् ! युक्तासंख्यात का क्या स्वरूप है ? [501 उ.] आयुष्मन् ! युक्तासंख्यात तीन प्रकार का निरूपित किया है / यथा--- 1. जघन्य युक्तासंख्यात, 2. उत्कृष्ट युक्तासंख्यात और 3 अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) युक्तासंख्यात / 502. से कि तं असंखेज्जासंखेज्जए? असंखेज्जासंखेज्जए तिविहे पण्णत्ते। तं जहा--जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए। {502 प्र.] भगवन् ! असंख्यातासंख्यात का क्या स्वरूप है ? [502 उ.] आयुष्मन् ! असंख्यातासंख्यात तीन प्रकार का है। यथा-१ जघन्य असंख्यातासंख्यात, 2. उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात और 3. अजघन्यानुत्कृष्ट (मध्यम) असंख्यातासंख्यात / 503. से कि तं अणंतए ? अणंतए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा—परित्ताणतए जुत्ताणतए अणताणतए। [503 प्र.] भगवन् ! अनन्त का क्या स्वरूप है ? [503 उ.] आयुष्मन् ! अनन्त के तीन प्रकार हैं। यथा- 1. परीतानन्त, 2. युक्तानन्त और 3. अनन्तानन्त / 504. से कि तं परित्ताणतए ? परित्ताणतए तिबिहे पण्णत्ते / तं०-जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए। [504 प्र.] भगवन् ! परीतानन्त किसे कहते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org