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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [407 कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या 464. से कि तं कालियसुयपरिमाणसंखा ? कालियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णता / तं जहा---पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पदसंखा पादसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्मयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा / से तं कालियसुयपरिमाणसंखा। [494 प्र.] भगवन् ! कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? [494 उ.] आयुष्मन् ! कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की कही गई है / यथा१. पर्यव (पर्याय) संख्या, 2. अक्षरसंख्या, 3. संघातसंख्या, 4. पदसंख्या, 5. पादसंख्या, 6. गाथासंख्या, 7. श्लोकसंख्या, 8. वेढ (वेष्टक) संख्या, 9. नियुक्तिसंख्या, 10. अनुयोगद्वारसंख्या, 11. उद्देशसंख्या, 12. अध्ययनसंख्या, 13. श्रुतस्कन्धसंख्या, 14. अंगसंख्या आदि कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या है। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में कालिकश्रुतपरिमाण की संख्या के कतिपय नामों का उल्लेख किया है। जिस श्रुत का रात्रि व दिन के प्रथम और अंतिम प्रहर में स्वाध्याय किया जाये उसे कालिकश्रत कहते हैं। इसके अनेक प्रकार हैं। जैसे-उत्तराध्ययनसूत्र, दशाश्रतस्कन्धकल्प (बहल्कल्प), व्यवहारसूत्र, निशीथसूत्र आदि / ' जिसके द्वारा इनके इलोक आदि के परिमाण का विचार हो उसे कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या कहते हैं / ___ पर्यवसंख्या आदि के अर्थ-१. पर्यव, पर्याय अथवा धर्म और उसकी संख्या को पर्यवसंख्या कहते हैं। 2. अकार आदि अक्षरों की संख्या-गणना को अक्षरसंख्या कहते हैं। अक्षर संख्यात होते हैं, अनन्त नहीं। इसलिये अक्षरसंख्या संख्यात है। 3. दो आदि अक्षरों के संयोग को संघात कहते हैं। इसकी संख्या-गणना संघातसंख्या कहलाती है / यह संघातसंख्या भी संख्यात ही है। 4. सुबन्त और तिङ्गन्त अक्षरसमूह पद कहलाता है / पदों की संख्या को पदसंख्या कहते हैं / 5. श्लोक आदि के चतुर्थाश को पाद कहते हैं। इनकी संख्या को पादसंख्या कहते हैं / 6. प्राकृत भाषा में लिखे गये छन्दविशेष को गाथा कहते हैं / इस गाथा-संख्या-गणना का नाम गाथासंख्या है। 7. श्लोकों की संख्या श्लोकसंख्या है। 8. बेष्टकों (छन्दविशेष) की संख्या वेष्टकसंख्या कहलाती है / 1. कालिकश्रुत के रूप में संकलित सूत्रों के नाम आदि विशेष वर्णन के लिये देखिये नन्दीसूत्र (प्रागम प्रकाशन समिति, ब्यावर) सूत्र 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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