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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [393 प्रत्युत्तर में व्यवहारनयवादी ने कहा-जैसे पांच गोष्ठिक पुरुषों (भागोदारों) का कोई दव्य सामान्य होता है / यथा-हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य ग्रादि (वैसे पांचों के प्रदेश सामान्य होते) तो तुम्हारा कहना युक्त था कि पांचों के प्रदेश हैं। (परन्तु ऐसा है नहीं,) इसलिये ऐसा मत कहो कि पांचों के प्रदेश हैं, किन्तु कहो-प्रदेश पांच प्रकार का है, जैसे-१. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, स्तकाय का प्रदेश. 3. नाकाशास्तिकाय का प्रदेश. 4. जीवास्तिकाय का प्रदेश और 5. स्कन्ध का प्रदेश। व्यवहारनय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय ने कहा-तुम भी जो कहते हो कि पांच प्रकार के प्रदेश हैं, वह नहीं बनता है। क्योंकि यदि पांच प्रकार के प्रदेश हैं यह कहो तो एक-एक प्रदेश पांच-पांच प्रकार का हो जाने से तुम्हारे मत से पच्चीस प्रकार का प्रदेश होगा / इसलिए ऐसा मत कहो कि पांच प्रकार का प्रदेश है / यह कहो कि प्रदेश भजनोय है--१. स्यात् धर्मास्तिकाय का प्रदेश, 2. स्यात् अधर्मास्ति काय का प्रदेश, 3. स्यात् आकाशास्तिकाय का प्रदेश, 4. स्यात् जीव का प्रदेश, 5. स्यात् स्कन्ध का प्रदेश है। इस प्रकार कहने वाले ऋजुसूत्रनय से संप्रति शब्दनय ने कहा--तुम कहते हो कि प्रदेश भजनीय है, यह कहना योग्य नहीं है। क्योंकि प्रदेश भजनीय है, ऐसा मानने से तो धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का भी, याकाशास्तिकाय का भी, जीवास्तिकाय का भी और स्कन्ध का भी प्रदेश हो ___ इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। आकाशास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का, अधर्मास्तिकाय का, जीवास्तिकाय का, स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। जीवास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, प्राकाशास्तिकाय का प्रदेश या स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। स्कन्ध का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश अथवा जीवास्तिकाय का प्रदेश हो सकता है / इस प्रकार तुम्हारे मत से अनवस्था हो जायेगी। अत: ऐसा मत कहो-प्रदेश भजनीय है, किन्तु ऐसा कहो-धर्मरूप जो प्रदेश है, वहीं प्रदेश धर्म है-धर्मात्मक है, जो अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश अधर्मास्तिकायात्मक है, जो आकाशास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश प्राकाशात्मक है, एक जीवास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीव है, इसी प्रकार जो स्कन्ध का प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। इस प्रकार कहते हुए शब्दनय से समभिरूढनय ने कहा-तुम कहते हो कि धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्मास्तिकाय रूप है, यावत् स्कन्ध का जो प्रदेश, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है, किन्तु तुम्हारा यह कथन युक्तिसंगत नहीं है / क्योंकि यहाँ (धम्मे पएसे आदि में) तत्पुरुष और कर्मधारय यह दो समास होते हैं / इसलिये संदेह होता है कि उक्त दोनों समासों में से तुम किस समास की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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