________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [391 पर ही घटित होता है। अत: जब कोई संस्तारक-शय्या पर शयन करे तभी चलने आदि क्रिया से रहित होकर शयन करते समय ही उसे वसता हुआ माना जा सकता है / संग्रहनय सामान्यवादी है, इसलिए इसके मत से सभी शैयायें एक हैं, चाहे वे कहीं भी हों। ऋजुसूत्रनय संग्रहनय की अपेक्षा भी विशुद्ध है / ऋजुसूत्रनय का मंतव्य है संस्तारक पर प्रारूढ हो जाने मात्र से वसति शब्द का अर्थ घटित नहीं होता है, किन्तु संस्तारक के जितने आकाश प्रदेश वर्तमान में अवगाहन किये गये हैं, उन्हीं पर वसता हुआ मानना चाहिये। शब्द, समभिरूड और एवंभूत इन तीनों नयों की पदार्थ के निज स्वरूप में रहने के विषय में यह दृष्टि है कि आकाशप्रदेश पर द्रव्य होने से उनमें रहना वसति शब्द का अर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि कोई भी द्रव्य पर द्रव्य में नहीं रहता है / इसलिये प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने स्वरूप में निवास करता है। अब प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयों का निरूपण करते हैं / प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयनिरूपण 476. से कि तं पदेसदिट्टतेणं ? पदेस दिळंतेणं गमो भणति---छण्हं पदेसो, तं जहा-धम्मपदेसो अधम्मपदेसो आगासपदेसो जीवपदेसो खंधपदेलो देसपदेसो। एवं वयं गर्म संगहो भणइ-जं भणसि--छाहं पदेसो लण्ण भवइ, कम्हा? जम्हा जो सो देसपदेसो सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को दिळंतो? दासेण मे खरो कीमो दासो वि मे खरो वि मे, तं मा भणाहि-छण्हं पएसो, भणाहि पंचण्हं पएसो, तं जहा–धम्मपएसो अहम्मपएसो अागासपदेसो जीवपएसो खंधपदेसो। एवं वयंतं संगहं ववहारो भणइ-जं भणसि-पंचण्हं पएसो तं ण भवइ, कम्हा? जइ जहा पंचण्हं गोट्ठियाण केइ दव्वजाए सामष्णे, तं जहा-हिरण्णे वा सवण्णे वा धणे वा धणे वा, तो जुत्तं वत्तु जहा पंचण्हं पएसो ? तं मा भणाहि-पंचण्हं पएसो, भणाहि-पंचविहो पएसो, तं जहाधम्मपदेसो प्रहम्मपदेसो आगासपदेसो जीवपदेसो खंधपदेसो। एवं वदंतं ववहार उज्जुसुओ भणति--जं भणसि-पंचविही पदेसो तं न भवइ, कम्हा ? जइ ते पंचविहो पएसो एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो एवं ते पणुवीसतिविही पदेसो भवति, तं मा भणाहि-पंचविहो पएसो, भणाहि-भतियम्बो पदेसो-सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया पागासपदेसो सिया जीवपदेसो सिया खंधपदेसो। __ एवं वयंतं उज्जुसुयं संपतिसणओ भणति-जं भणसि भइयवो पदेसो तं न भवति, कम्हा ? जइ ते भइयव्यो पदेसो एवं ते धम्मपदेसो वि सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो सिया खंघपदेसो 1, अधम्मपदेसो वि सिया घम्मपदेसो सिया आगासपएसो सिया जीवघएसो सिया खंधपएसो 2, आगासप एसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अहम्मपएसी सिया जीवपएसो सिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org