________________ 364] [अनुयोगदारसूत्र शेषवत्-अनुमाननिरूपण 442. से कि तं सेसवं? सेसवं पंचविहं पण्णत्तं / तं जहा- कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसएणं / [442 प्र.] भगवन् ! शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? [442 उ.] अायुष्मन् ! शेषवत्-अनुमान पांच प्रकार का कहा गया है। यथा---१. कार्येण (कार्य से), 2. कारणेन (कारण द्वारा), 3. गुणेण (गुण से), 4. अवयवेन (अवयव से) और 5. आश्रयेण (ग्राश्रय से) / (इन पांचों द्वारा जो अनुमान किया जाता है. उसे शेषवत्-अनुमान कहते हैं / ) 443. से कि तं कज्जेणं ? कजेणं संखं सद्देणं, भेरि तालिएणं, वसभं ढकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं हेसिएणं, गयं * गुलगुलाइएणं, रहं घणघणाइएणं / से तं कज्जेणं / |443 प्र.] भगवन् ! कार्य से उत्पन्न होने वाले शेषवत्-अनुमान का क्या स्वरूप है ? 1443 उ.] आयुष्मन् ! शंख के शब्द को सुनकर शंख का अनुमान करना, भेरी के शब्द (ध्वनि) से भेरी का, बैल के रंभाने-दलांकने से बैल का, केकारव सुनकर मोर का, हिनहिनाना मुनकर घोड़े का, गुलगुलाहट सुनकर हाथी का और घनघनाट सुनकर रथ का अनुमान करना / यह कार्यलिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान है। 444. से कितं कारणणं? कारणेणं तंतवो पडस्स कारणं ण पडो तंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं ण कडो वोरणाकारणं, मिप्पिडो घडस्स कारणं ण घडो मिप्पिडकारणं / से तं कारणेणं / |444 प्र.| भगवन् ! कारणरूप लिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान क्या है ? |444 उ.! आयुष्मन् ! कारणरूप लिंग से उत्पन्न हुआ शेषवत्-अनुमान इस प्रकार हैतत पट के कारण हैं, किन्त पट तत का कारण नहीं है, वीरणा-तण कट चटाई) के कारण हैं, लेकिन कट वीरणा का कारण नहीं है. मिट्टी का पिंड घड़े का कारण है किन्तु घड़ा मिट्टी का कारण नहीं है। यह कारणलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान है / 445. से कि तं गणेणं? गुणणं सुवण्णं निकसेणं, पुप्फ गंधणं, लवणं रसेणं, मदिरं आसायिएणं, वत्थं फासेणं / से तं गुणणं / | 445 प्र.| भगवन् ! गुणलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान किसे कहते है ? | 445 उ. प्रायुष्मन् ! निकष-- कसौटी से स्वर्ण का, गंध से पुष्प का, रस से नमक का, आस्वाद (चखने) से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का अनुमान करना गुणनिप्पन्न शेषवत्-अनुमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org