________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [357 बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा उनका अपहरण किये जाने पर असंख्यात उत्सर्पिणी-अवपिणी कालों के समयों जितने होंगे / क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात का प्रमाण बताने के लिये कहा है कि प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों की जितनी प्रदेशराशि होती है, उतने हैं / इसी बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिये कहा है कि इन श्रेणियों की विष्कभसूची का प्रमाण तृतीय वर्गमूल से गुणित द्वितीय वर्गमूलप्रमाण अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल का धन करने पर प्राप्त संख्याप्रमाण जानना चाहिये / जिसका असत्कल्पना से स्पष्टीकरण इस प्रकार है मान लें कि असंख्यात श्रेणियां 256 हैं / इनका प्रथम वर्गमूल 16, द्वितीय वर्गमूल 4 और तृतीय वर्गमूल 2 हुया / इस द्वितीय वर्गमूल 4 और तृतीय वर्गभूल 2 से गणा करने पर (442 -- 8) पाठ हुए / इन आठ को हम असंख्यात श्रेणियों की विकभसूची मान लें। इन असंख्यात श्रेणियों की जितनी प्रदेश राशि होगी उतने वैमानिक देवों के क्षेत्र की अपेक्षा बद्धवैक्रियशरीर हैं / अथवा अंगुल का प्रमाण 256 है। इसका तृतीय वर्गमूल 2 हुआ / उसका घन करने पर (2x2x2 =8) हुए। इस पाठ को हम कल्पना से असंख्यात श्रेणियों की विष्कंभसूची मान लें। इस प्रकार दोनों प्रकार के कथन में अर्थ का कोई भेद नहीं है। मुक्तवैक्रिय शरीरों का परिमाण सामान्य मुक्तौदारिक शरीरों जितना अनन्त जानना चाहिये। वैमानिक देवों के बद्ध और मुक्त पाहारकशरीरों का प्रमाण नारकों जैसा जानने के संकेत का यह आशय है कि जैसे नारकों के बद्धयाहारकशरीर नहीं होते, इसी प्रकार वैमानिक देवों के भी नहीं होते हैं। मुक्ताहारकशरीर पूर्वभवों की अपेक्षा होते हैं / इनका प्रमाण नारकों के मुक्ताहारकशरीरों जितना अनन्त है। बद्ध-तैजस-कार्मण शरीरों का प्रमाण इन्हीं के बद्धवैक्रियशरीरों के समान असंख्यात और मुक्त-तैजस-कार्मण शरीर मुक्त वैक्रिय शरीरों के समान अनन्त हैं। . इस प्रकार से चौबीस दंडकवर्ती जीवों के शरीरों की प्ररूपणा जानना चाहिये / इसके पश्चात् 'से तं' आदि पदों द्वारा कालप्रमाण के वर्णन के पूर्ण होने की सूचना दी गई है। अब क्रमप्राप्त भावप्रमाण का वर्णन प्रारंभ करते हैं / भावप्रमाण 427. से कि तं भावप्पमाणे? . भावप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--गुणप्पमाणे णयप्पमाणे संखप्पमाणे। [427 प्र. भगवन् ! भावप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [427 उ.| प्रायुष्मन् ! भावप्रमाण तीन प्रकार का कहा है / यथा-१. गुणप्रमाण, 2. नयप्रमाण और 3. संख्याप्रमाण / " ... . ........ .. .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org