________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [355 [425-3] ज्योतिष्कदेवों के प्राहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के आहारकशरीरों के बराबर है। [4] तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएति वेध घेउनिया तहा भाणियव्वा / 25.4| ज्योतिष्कदेवों के बद्ध-मक्त तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण इनके बद्ध-मुक्त वैक्रियशरीरों के बराबर है / विवेचन--प्रस्तुत सूत्रों में ज्योतिष्कदेवों के बद्ध-मुक्त शरीरों की प्ररूपणा की गई है / इनके बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा नारकवत् समझने का तात्पर्य यह है कि बद्धऔदारिकगरीर तो ज्योतिष्कदेवों के होते नहीं और मुक्तीदारिकशरीर पूर्वभवों की अपेक्षा अनन्त हैं। ज्योतिष्कदेवों के बद्ध वैक्रियशरीरों का निर्देश अति संक्षेप में किया है। उसका आशय यह है कि वे असंख्यात हैं। कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी और अपिणी कालों के समयों के बराबर हैं। क्षेत्रतः उनका प्रमाण प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों के प्रदेशों के बराबर है / विशेष यह है कि उन श्रेणियों की विष्कंभसूची व्यंतरों की विष्कभसूची से संख्यात गुणी अधिक होती है। क्योंकि महादंडक में व्यतरो से ज्योतिष्क देव संख्यातगुणा अधिक बताये गये हैं। इसीलिये प्रतिभाग के विषय में विशेष स्पष्ट करते हुए कहा है कि उन श्रेणियों की विष्कभसूची 256 प्रतरांगुलों का वर्गमूल रूप जो प्रतिभाग–अंश है, उस अंशरूप यह विष्कंभसूची जानना चाहिये / प्राशय यह है कि 256 अंगुल वर्गप्रमाण श्रेणीखंड में यदि एक-एक ज्योतिष्क देव की स्थापना की जाये तो वे संपूर्ण प्रतर को पूर्ण कर सकेंगे। प्रथवा यदि एक-एक ज्योतिष्कदेव के अपहार से एक-एक दो सौ छप्पन अंगुल वर्ग प्रमाण श्रेणी खंड का अपहार होता है, तब सब मिलकर ज्योतिष्क देवों की संख्या की पूर्णता हो और दूसरी ओर संपूर्ण प्रतर खाली होगा / मुक्तवैक्रियशरीर सामान्य मुक्तमौदारिकशरीरों के तुल्य अर्थात अनन्त हैं / नारकों के जैसे बद्धपाहारकशरीर नहीं होते, इसी प्रकार ज्योतिष्क देवों के भी नहीं हैं। मुक्ताहारकशरीर नारकों के शरीरों के समान अनन्त हैं। ज्योतिष्कों के बद्ध नैजस-कार्मण शरीर असंख्यात हैं, क्योंकि ये देव असंख्यात हैं। मुक्त तैजस-कार्मण शरीर अनन्त हैं / अनन्त होने का कारण नारकों के मुक्त तैजस-कार्मण शरीरों का प्रमाण बताने के प्रसंग में स्पष्ट किया जा चुका है। वैमानिक देवों के बद्ध-मूक्त शरीर एवं कालप्रमाण का उपसंहार 426. [1] वेमाणियाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नता? गोयमर ! जहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वर / [426-1 प्र. भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने प्रौदारिकशरीर कहे गये हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org