SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [321 हेटिममज्झिमगेवेज्जविमाणेसु णं जाव गो० ! जह० तेवीसं सागरोंकमाई उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई। हेद्विमउवरिमगेवेज्ज० जाव जह० चउदीसं सागरोवमाइं उक्को. पणुवीसं सागरोवमाई। मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जबिमाणेसु णं जाव गोयमा ! जह० पणुवीसं सागरोवमाई उक्को० छवीसं सागरोवमाई। मज्झिममज्झिमगेवेज्ज जाव जह० छन्वीसं सागरोवमाई उक्को० सत्तावोसं सागरोवमाई। मज्झिमउवरिमगेवेज्जविमाणेसु णं जाव गोतमा ! जह० सत्तावीसं सागरोवमाई उक्को० अट्ठावीसं सागरोवमाई। उरिमहेट्ठिमगेवेज जाव जह० अट्ठावीसं सागरोदमाई उक्को० एक्कणतीसं सागरोवमाई। उपरिममज्झिमगेवेज्ज. जाव जह० एक्कूणतीसं सागरोबमाई उक्को० तीसं सागरोवमाइं। उवरिमउरिमगेवेज्ज० जाव जह तीसं सागरोवमाई उक्को० एक्कतोसं सागरोवमाई / [391-8 प्र.] भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन प्रैवेयक विमान में देवों की स्थिति कितनी कही [391-8 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति बाईस सागरोषम की और उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम की है। [प्र.] भगवन् ! अधस्तनमध्यम अवेयक विमान के देवों की स्थिति कितनी कही है ? उ. गौतम ! जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति चौबीस सागरोपम की है। अधस्तन-उपरिम बेयक के देवों की जघन्य स्थिति चौबोस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरोपम की है / तथा गौतम ! मध्यम-अधस्तन अवेयक के देवों की जघन्य स्थिति पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति छब्बीस सागरोपम की होती है / तथा-- मध्यम-मध्यम वेयक देवों की जघन्य स्थिति छब्बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है / तथा गौतम ! मध्यम-उपरिम वेयक विमानों में देवों की जघन्य स्थिति सत्ताईस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति अट्ठाईस सागरोपम की होती है / तथा उपरिम-अधस्तन अवेयक विमानों के देवों की जघन्य स्थिति अट्ठाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम की है। उपरिम-मध्यम प्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति तीस सागरोपम की है / तथा उपरिम-उपरिम अवेयक विमानों के देवों की जघन्य स्थिति तीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति इकतीस सागरोपम की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy