________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [291 दिगम्बर साहित्य में भी कालगणना के प्रमाण का निरूपण किया गया है / यहाँ किये गये वर्णन से उस वर्णन में समानता अधिक है, विभिन्नता कतिपय अंशों में ही है। साथ ही वहाँ भी संज्ञानों के क्रम एवं नामों में अन्तर पाया जाता है। अतएव परस्पर तुलना करने की दृष्टि से दिगम्बर साहित्यगत वर्णन का सारांश परिशिष्टं में देखिए / इस प्रकार व्यवहार में जितनी राशि की गणना की जा सकती है, उतना ही गणित का विषय है / इसके बाद गणना करने के लिये उपमा का आश्रय लिया जाता है / औपमिक कालप्रमारणनिरूपण 368. से कि तं ओवमिए ? ओवमिए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–पलिओक्मे य सागरोवमे य। [368 प्र.] भगवन् ! औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? अर्थात् औपमिक (काल) किसे कहते हैं ? 368 उ.] आयुष्मन् ! औपमिक (काल) प्रमाण दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-१. पल्योपम और 2. सागरोपम / विवेचन---औपमिक काल उसे कहते हैं जो गणित का विषय न हो, केवल उपमा के द्वारा जिसका वर्णन किया जाए। वह दो प्रकार का हैपल्योपम और सागरोपम / पल्य (धान्य को भरने का गड्ढा) की उपमा के द्वारा जिस कालमान का वर्णन किया जाए उसे पल्योपम और सागर (समुद्र) की उपमा द्वारा जिसका स्वरूप समझाया जाए उसे सागरोपम काल कहते हैं / पल्योपम-सागरोपमप्ररूपण 366. से कि तं पलिओवमे ? पलिओक्मे तिविहे पणत्ते / तं जहा- उद्धारपलिओवमे य अद्धापलिओबमे य खेत्तपलिओवमेय। [369 प्र.] भगवन् ! पल्योपम किसे कहते हैं ? [369 उ.] आयुष्मन् ! पल्योपम के तीन प्रकार हैं-१. उद्धारपल्योपम, 2. अद्धापल्योपम और 3. क्षेत्रपल्योपम / 370. से कि तं उद्धारपलिओवमे? उद्धारपलिओवमे दुबिहे पण्णत्ते / तं जहा-सुहुमे य वावहारिए य / [370 प्र.] भगवन् ! उद्धारपल्योयम किसे कहते हैं ? [370 उ.] आयुष्मन् ! उद्धारपल्योपम दो प्रकार से वर्णित किया गया है, यथा-सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम / 371. तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे / [371] इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है। अर्थात् उसकी यहाँ व्याख्या न करके आगे करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org