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________________ 286] [अनुयोगद्वारसूत्र नो इणमठे समठे? जम्हा संखेज्जाणं तंतूणं समुदयसमितिसमागमेणं पडसाडिया निष्पज्जइ, उवरिल्लम्भि तंतुम्मि अच्छिण्णे हे दिल्ले तंतू ण छिज्जइ, अण्णम्मि काले उरिल्ले तंतू छिज्जइ अण्णम्मि काले हिडिल्ले तंतू छिज्जइ, तम्हा से समए न भवति / एवं वयंतं पण्णवर्ग चोयए एवं क्यासि-जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा उवरिल्ले तंतू छिण्णे से समए ? ण भवति / जम्हा संखेज्जाणं पम्हाणं समुदयसमितिसमागमेणं एगे तंतू निष्फज्जइ, उवरिल्ले पम्हम्मि अच्छिण्णे हेडिल्ले पम्हे न छिज्जति, अण्णम्मि काले उवरिल्ले पम्हे छिज्जति अण्णम्मि काले हेडिल्ले पम्हे छिज्जति, तम्हा से समए ण भवति / एवं वदंतं पण्णवगं चोयए एवं वदासि-जेणं कालेणं तेणं तुग्णागदारएणं तस्स तंतुस्स उवरिल्ले पम्हे छिण्णे से समए ? ण भवति / कम्हा ? जम्हा अणताणं संघाताणं समुदयसमितिसमागमेणं एगे पम्हे णिष्फज्जइ, उरिल्ले संघाते अविसंघातिए हेडिल्ले संघाते ण विसंघाडिज्जति, अग्णमिम काले उवरिल्ले संघाए विसंघातिज्जइ अग्णम्मि काले हेडिल्ले संघाए विसंघादिज्जइ, तम्हा से समए ण भवति / एतो वि णं सुहुमतराए समए पण्णत्ते समणाउसो! [366 प्र.] भगवन् ! समय किसे कहते हैं ? [366 उ.] आयुष्मन् ! समय की (विस्तार से) प्ररूपणा करूंगा / वह इस प्रकार--जैसे कोई एक तरुण, बलवान्, युगोत्पन्न (सुषमदुषम आदि तीसरे-चौथे बारे में उत्पन्न) नीरोग, स्थिरहस्ताग्र (मजबूत पहुंचा) बाला, सुदृढ़-विशाल हाथ-पैर, पृष्ठभाग (पीठ), पृष्ठान्त (पसली) और उरु (जंघा) वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट-अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक (प्रहरणविशेष), मुद्गर मुष्टिकामुष्टिबन्ध आदि के व्यायामों के अभ्यास, प्राघात-प्रतिघातों से सुदृढ़-सघन शारीरिक अवयव वाला, सहज आत्मिक-मानसिक बलसम्पन्न, कूदना, तैरना, दौड़ना आदि व्यायामों से अजित सामर्थ्य-शक्ति से सम्पन्न, छेक (कार्यसिद्धि के उपाय का ज्ञाता), दक्ष, प्रतिष्ठप्रवीण, कुशल (विचारपूर्वक कार्य करने वाला), मेधावी (बुद्धिमान्), निपुण (चतुर), अपनी शिल्पकला में निष्णात, तुन्नवायदारक (दर्जी का पुत्र) एक बड़ी सूती अथवा रेशमी शाटिका (साड़ी) को लेकर अतिशीघ्रता से एक हाथ प्रमाण फाड़ देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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