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________________ 248] [अनुयोगद्वारसूत्र 'अज्जकालिगाई' अर्थात् आज-कल शब्द वर्तमान का बोधक है। अर्थात् जिस काल में जितनी ऊंचाई, चौड़ाई आदि बाले मनुष्य हों, उनकी अपेक्षा ही आत्मांगुल का प्रमाण निर्धारित होता है। प्रात्मांगुल का प्रयोजन बतलाने के अनन्तर अब उसके अवान्तर भेदों का निर्देश करते हैं / प्रात्मांगुल के भेद 337. से समासओ तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--सूतिअंगुले 1 पयरंगुले 2 घणंगुले 3 / अंगुलायता एगपदे सिया सेढी सूइअंगुले 1 सूयी सूयीए गुणिया पयरंगुले 2 पयरं सूईए गुणितं घणंगुले 3 / [337] आत्मांगुल सामान्य से तीन प्रकार का है- 1. सूच्यंगुल, 2. प्रतरांगुल, 3. धनांगुल / 1. एक अंगुल लम्बी और एक प्रदेश चौड़ी आकाश-प्रदेशों की श्रेणि-पंक्ति का नाम सूच्यंगुल है। 2. सूच्यंगुल को सूच्यंगुल से गुणा करने पर प्रतरांगुल बनता है / 3. प्रतरांगुल को सूच्यंगुल से गुणित करने पर घनांगुल होता है / विवेचन-सूत्र में प्रात्मांगुल के भेदत्रिक का वर्णन किया है। सुच्यंगुल की निष्पन्नता में श्रेणी शब्द पाया है। इस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं / यहाँ क्षेत्रप्रमाण के निरूपण का प्रसंग होने से श्रेणि शब्द का अर्थ 'ग्राकाशप्रदेशों की पंक्ति' ग्रहण किया गया है। शास्त्र में श्रेणि के सात प्रकार कहे गये हैं-१. ऋजुअायता, 2. एकतोवक्रा, 3. द्वितोवक्रा, 4. एकतःखहा, 5. द्वितःखहा, 6. चकवाला, 7. अर्धचक्रवाला।' इन सात भेदों में से प्रस्तुत में ऋजुपायता श्रेणि प्रयोजनीय है। अतएव सूच्यंगुल का अर्थ यह हुआ कि सूची-सूई के आकार में दीर्घता को अपेक्षा एक अंगुल लंबी तथा बाहल्य की अपेक्षा एक प्रदेश ऋजुअायता प्राकाशप्रदेशों की पंक्ति सूच्यंगुल कहलाती है। यद्यपि सिद्धान्त की दृष्टि से सूज्यंगुलप्रमाण आकाश में असंख्य प्रदेश होते हैं, लेकिन कल्पना से इनका प्रमाण तीन मान लिया जाए और इन तीन प्रदेशों को समान पंक्ति में 000 इस प्रकार स्थापित किया जाए तो इसका आकार सूई के समान एक अंगुल लम्बा होने से इसे सूच्यंगुल कहते हैं। - प्रतरांगुल--प्रतर वर्ग को कहते हैं और किसी राशि को दो बार लिखकर परस्पर गुणा करने पर जो प्रमाण आए वह वर्ग है / जैसे दो की संख्या को दो बार लिखकर उनका परस्पर गुणा करने पर 2 x 2 =4 हुए / यह चार की संख्या दो की वर्गराशि हुई। इसीलिये सूत्र में प्रतरांगुल 1. ठाणांग पद 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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