________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [245 [333 उ.] आयुष्मन् ! अंगुल तीन प्रकार का है, यथा-१. प्रात्मांगुल, 2. उत्सेधांगुल और 3. प्रमाणांगुल / विवेचन---अंगुल के मुख्य तीन प्रकार हैं / अब क्रम से उनका विस्तृत वर्णन किया जा रहा है। आत्मांगुल 334. से किं तं प्रायंगुले ? आयंगुले जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि गं तया अपणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं, नवमुहाई पुरिसे पमाणजुत्ते भवति, दोणिए पुरिसे माणजुत्ते भवति, अद्धभारं तुलमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवति / माणुम्माण-पमाणे जुता लक्खण-बंजण-गुहि उववेया। उत्तमकुलप्पसूया उत्तमपुरिसा मुणेयच्वा // 96 / / होंति पुण अहियपुरिसा अट्ठसतं अंगुलाण उधिद्धा। छण्णउति अहमपुरिसा चउरुत्तर मज्झिमिल्ला उ // 97 // होणा वा अहिया वा जे खल सर-सत्त सारपरिहीणा / ते उत्तमपुरिसाणं अवसा पेसत्तणमुर्वेति // 98 // [334 प्र.] भगवन् ! आत्मागुल किसे कहते हैं ? [334 उ.] जिस काल में जो मनुष्य होते हैं (उस काल की अपेक्षा) उनके अंगुल को आत्मांगुल कहते हैं। उनके अपने-अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है। नौ मुख प्रमाण वाला (अर्थात् एक सौ पाठ प्रात्मांगुल की ऊंचाई वाला) पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और अर्धभारप्रमाण तौल वाला पुरुष उन्मानयुक्त होता है। जो पूरुष मान-उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा (शंख आदि शारीरिक शभ) लक्षणों एवं (तिल मसा आदि) व्यंजनों से और (उदारता, करुणा आदि) मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं (उग्र, भोग आदि) उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे (चक्रवर्ती ग्रादि) पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना चाहिते / 96 ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से एक सौ पाठ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं। अधम पुरुष छियानवै अंगुल और मध्यम पुरुष एक सौ चार अंगुल ऊंचे होते हैं / 67 ये हीन (छियानवै अंगुल की ऊंचाई वाले) अथवा उससे अधिक ऊंचाई वाले (मध्यम पुरुष) जनोपादेय एवं प्रशंसनीय स्वर से, सत्त्व से-आत्मिक-मानसिक शक्ति से तथा सार से अर्थात् शारीरिक क्षमता, सहनशीलता, पुरुषार्थ आदि से हीन और उत्तम पुरुषों के दास होते हैं / 98 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org