________________ प्रमाणाधिकार निरूपण सोलह कर्ममाषक अथवा चौसठ काकणियों का एक स्वर्ण (मोहर) होता है। 329. एतेणं पडिमाणप्पमाणेणं कि पओयणं? एतेणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण्ण-रजत-मणि-मोत्तिय-संख-सिलप्पवालावीणं दवाणं पडिमाणप्पमाणनित्तिलक्षणं भवति / से तं पडिमाणे / से तं विभागनिष्फण्णे / से तं दध्यपमाणे / 329 प्र.] भगवन् ! इस प्रतिमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? (329 उ.] अायुष्मन् ! इस प्रतिमानप्रमाण के द्वारा सूवर्ण, रजत (चांदी), मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल (मंगा) आदि द्रव्यों का परिमाण जाना जाता है। इसे ही प्रतिमानप्रमाण कहते हैं / यही विभागनिष्पन्नप्रमाण और द्रव्यप्रमाण की वक्तव्यता है / विवेचन--सूत्र में प्रतिमानप्रमाण एवं उसके प्रयोजन के साथ द्रव्यप्रमाण के वर्णन की समाप्ति का प्रतिपादन किया है / तोलने योग्य स्वर्ण आदि को एवं तोलने वाले गंजा आदि के माप को प्रतिमान कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जब प्रतिमान शब्द की करणसाधन में व्युत्पत्ति करते हैं—प्रतिमीयते अनेन इति प्रतिमानम् तब प्रतिमान शब्द के वाच्य प्रतिमानक-वजन करने वाले गुजादि होते है। क्योंकि सुवर्ण प्रादि द्रव्यों का वजन गुंजादि से तोल कर जाना जाता है 1 जब 'प्रतिमीयते यत्तत् प्रतिमानम्'-- जिसका प्रतिमान-बजन किया जाये, वह प्रतिमान, इस प्रकार कर्मसाधन व्युत्पत्ति की जाती है तब सुवर्ण आदि द्रव्य प्रतिमान कहलाते हैं। करणसाधन और कर्मसाधन दोनों प्रकार की व्युत्पत्तियों के अनुसार गुंजा आदि और सुवर्ण आदि प्रतिमानक एवं प्रतिमेय दोनों को प्रतिमान कहा है, फिर भी यहाँ मुख्य रूप से प्रतिमान शब्द का कर्मसाधन रूप व्युत्पत्तिमूलक अर्थ लिया गया है / इसीलिये उन-उन सुवर्ण आदि को तौलने के लिये गुंजा आदि रूप बांटों का उल्लेख किया है / तराजू के पलड़े में रखकर सुवर्ण आदि को तोले जाने से यह जिज्ञासा हो सकती है कि उन्मान एवं प्रतिमान प्रमाण के प्राशय में कोई अन्तर नहीं है / क्योंकि चाहे तराजू से शक्कर, मिश्री प्रादि को तोला जाये या सुवर्ण आदि तोला जाये, तराज के उपयोग और तोलने की क्रिया दोनों में एक जैसी है। फिर दोनों का पृथक्-पृथक निर्देश करने का क्या कारण है ? इसका समाधान यह है कि लोक-व्यवहार में शक्कर आदि मन, सेर, छटांक आदि के द्वारा तौले जाते हैं। उनकी तोल के लिये तोला, माशा, रत्ती प्रयोग में नहीं पाते हैं, जबकि सारभूत धन के रूप में माने गये स्वर्ण, चांदी, मणि-माणक आदि को तोलने के लिये तोला, माशा आदि का उपयोग किया जाता है। यदि सोना सेर से भी तोला जाये तो उस सोने को अस्सी तोला है, ऐसा कहेंगे / दूसरी बात यह है कि वस्तु के मूल्य के कारण भी उनके मान के लिये अलग-अलग मानक निर्धारित किये जाते हैं / इसलिये उन्मान और प्रतिमान के मूल अर्थ में अंतर नहीं है, लेकिन उनके द्वारा मापे-तोले जाने वाले पदार्थों के मूल्य में अन्तर है। इसी कारण उन्मान और प्रतिमान का पथक-पृथक निर्देश किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org